SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुछ प्रसंग और निर्वाण ५७ १८. अजातशत्रु को गुरु की युक्ति ठीक ऊँची। उसने बूढ़े पिता को वन्दीगृह में डाल भूखो मार डाला और स्वयं सिंहासन पर चढ़ बैठा । अव राज्य में देवदत्त का प्रभाव बढ़ जाय तो इसमें आश्चर्य क्या? लोग जितना भय राजा से खाते थे उससे अधिक देवदत्त से डरते थ। बुद्ध का खून करने लिए उसने राजा को प्रेरित किया। लेकिन जो जा हत्यारं गए वे बुद्ध को मार ही न सके। निरतिशय अहिंसा और प्रेमवृत्ति, उनके वैराग्यपूर्ण अंतःकरण में से निकलता हुआ मर्मस्पर्शी उपदेश उनके शत्रुओ के हृदयों को भी शुद्ध कर देता। जो जो हत्यारे गए वे बुद्ध के शिष्य हो गए। १९. शिला प्रहार: देवदत्त इससे चिढ़ गया। एक बार गुरु पर्वत की तलहटी की छाया में भ्रमण कर रहे थे, तव पर्वत पर से देवदत्त ने भारी शिला उनके करर ढकेल दी। दैवयोग से शिला तो उन पर नहीं गिरी लेकिन उसकी चीप उड़कर वुद्ध देव के पैर में लग गई। बुद्ध ने देवदत्त को देखा। उन्हें उसपर दया आ गई । वे बोले : "अरे मूर्ख, खून करने के इरादे से जो तूने यह दुष्ट कृत्य किया, उससे तू कितने पाप का भागी बना, इसका तुझे भान नहीं है।" २०. पैर की चोट से बहुत समय तक चलना-फिरना अशक्य हो गया। भिनुओं को भय हुआ कि फिर से देवदत्त बुद्ध को मारने का उपाय करंगा । इससे वे रातदिन उनके आसपास पहरा देने
SR No.010177
Book TitleBuddha aur Mahavira tatha Do Bhashan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorlal Mashruvala, Jamnalal Jain
PublisherBharat Jain Mahamandal
Publication Year1950
Total Pages163
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy