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________________ की प्रत्येक शाखाएँ अपने-अपने दृष्टिकोण से चार्वाक दर्शन का खण्डन की हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि भारतीय समाज इस दर्शन का प्रचुर प्रचार था तथा चार्वाक दर्शन का साहित्य भी बहुत विशाल रहा होगा, परन्तु कालक्रम से वह लुप्तप्राय है। वर्तमान युग में चार्वाक दर्शन से सम्बन्धित सामग्री अन्य भारतीय दर्शनों में चार्वाक के खण्डन से ही प्राप्त होती है। तथा कुछ इससे सम्बद्ध सामग्री इतस्ततः विकीर्ण रूप में उपलब्ध होती है जैसे आर्षमहाकाव्य, रामायण, महाभारत इत्यादि में। आचार्य वृहस्पति रचित वृहस्पति सूत्र ग्रन्थ में चार्वाक दर्शन से सम्बद्ध सभी सिद्धान्त बीजरूप में उपलब्ध होते हैं। ब्रह्म सूत्र में कहा गया है कि अर्थसाधन के लिये लोकापतिक शास्त्र ही वस्तुतः शास्त्र है- "सर्वथा लोकायतिकमेंव शास्त्रमर्थ ज्ञान काले।। वृहस्पति सूत्र में लिखा गया है कि लोकायतिक अग्निहोत्र संध्या, जप आदि भी अर्थ के लिये ही करता है- "एवमथार्थ करोत्यग्निहोत्र-सन्ध्याजपादीन।" कृष्णमिश्र द्वारा प्रणीत 'प्रबन्धचन्द्रोदय' के द्धितीय अध्याय में चार्वाक दर्शन का सिद्धान्त वर्णित मिलता है- चार्वाक शास्त्र ही एक मात्र शास्त्र है। पृथिवी, जल, तेज, वायु ये ही चार तत्व हैं। अर्थ और काम ये दो पुरूषार्थ हैं। होता, हवन और हव्य इसके नष्ट होने पर भी यदि स्वर्ग प्राप्त हो तो वनाग्निदग्ध वृक्षों में भी मीठे फल लटक आये। 'हरिभद्र सूरि' रचित 'षडदर्शन समुच्चय' में षड्दर्शनों की गणना में चार्वाक दर्शन को भी परिगणित किया गया है। इसके आठ श्लोकों में चार्वाक दर्शन के मूल विषयों का वर्णन किया गया है। श्री 'माधव' रचित 'सर्वदर्शन संग्रह' में चार्वाक दर्शन के लगभग सभी सिद्धान्त वर्णित मिलते हैं। वर्तमान समय में चार्वाक दर्शन का अध्ययन अध्यापन इसी ग्रन्थ से होता है। 'अनु० प्रम सुन्दर बोस, एसोर्स बुक ऑफ इण्डियन फिलॉसफी मे। प्र० २३४-२३५ । 2 स्वर्गः कर्तुक्रिया द्रव्यानाशेऽपि यदि यज्वनाम् । ततोदावाग्नि दग्धाना फल. दग्धाना फल स्याद् भूरि भूरूहाम्।। (प्र० च०) 47
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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