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________________ यद्यपि चार्वाक दर्शन के स्वतंत्र और मौलिक ग्रन्थ तो संख्या में बहुत कम है किन्तु चार्वाक सिद्धान्त का वर्णन सम्पूर्ण वेद और वेदांगों में प्राप्त होता है । वैदिक साहित्य में भी इतस्ततः स्वेच्छाचार और कामाचरण का सिद्धान्त प्राप्त होता है। दासी के साथ ऋषि-मुनियों का अवैध यौन सम्बन्ध, जीर्ण और वृद्धवयस में विवाह आदि विविध कामाचरणों का स्थल - स्थल पर दिग्दर्शन मिलता है । ' वेद के समान पुराणों में भी कामाचरण के अनेक उदाहरण मिलते हैंजीर्ण-शीर्ण च्यवन ऋषि ने राजाशर्याति की कन्या सुकन्या को पत्नी रूप में प्राप्त करने के लिये राजा से प्रार्थना की तथा राजा ने शाप भय से उन्हें अपनी कन्या दे दी—“प्रतिगृह्यत वा कन्यां भगवान प्रसाद ह।” महाभारत में चार्वाक का स्पष्ट उल्लेख हुआ है- महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर राजा युधिष्ठिर नें अपने वल के साथ हस्तिनापुर में प्रवेश किया। नगर की जनता विजयी राजा का सत्कार किया । पाण्डवों के जयघोष से आकाश व्याप्त हो उठा उसी समय चार्वाक नामक एक राक्षस बनावटी ब्राह्मण वेश धारण करके आया जो दुर्योधन का मित्र था । वह जपमाला, शिखा और त्रिदण्ड धारण किये था । लोकायत् प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष उसका ज्ञान सिद्धान्त है । प्रायः सभी भारतीय दर्शन प्रमा के साधन के रूप में प्रमाण को स्वीकार करता है- 'प्रमाकरणं प्रमाणं' । प्रमा यथार्थ ज्ञान होता है- 'यथार्थज्ञानं प्रमा' । प्रमाण को सभी भारतीय दर्शन स्वीकार करते हैं किन्तु इसकी संख्या को लेकर आपस में मतभेद है । इन प्रमाणों की संख्या एक से लेकर आठ तक बतायी जाती है। ऐसा मानसोल्लास में वर्णन मिलता है।' 1 चार्वाक दर्शन की शास्त्रीय समीक्षा - सर्वानन्दपाठक प्र० १५ 2 राजानं ब्रह्मणस्छद्मा चार्वाको राक्षसोऽब्रबीत् । तत्र दुर्योधन राजा भिक्षुरूपेण संवृत. ।। साक्षः शिखी त्रिदण्डीच धृष्टो विगत साध्व सः ।। महाभारत, राजधर्मनुशासन पर्व - (अ० ३८ ) 3 प्रत्यक्षमेकं चार्वाकः कणाद सुगतौपुनः । अनुमानं च तच्चापि साख्याः शब्द च ते उभे ।। न्यायैकदेशिनोऽयेवमुपमान चं केचन् । अर्थापत्या सहैतानि चत्वार्याहुः प्रभाकर ..... सभवैतिंहयुक्तानि तानि पौराणिका जगुः ।। (मानसोल्लास प्रकाशन- २ /१७/२०) 48
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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