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________________ १२. 'अर्थकामौ पुरुषार्थी' - अर्थ और काम ये दोनों ही पुरुषार्थ हैं। १३. दण्डनीतिरेव विद्या' – (अत्र वार्ता अन्तर्भवति) राजनीति ही एक मात्र विद्या है इसी में कृषि शास्त्र भी सम्मिलित है। १४. प्रत्यक्षमेवप्रमाणम्' - प्रत्यक्ष ही एक मात्र प्रमाण है। १५. लौकिकोमार्गोऽनुसर्तव्यः'- साधारण लोगों के मार्ग का अनुसरण करना चाहिये। इन्हीं बातों का उल्लेख हमें पूर्वपक्ष के रुप में शास्त्रों में मिलता है। महान आदर्शवादी माधवाचार्य नें, अपने ग्रन्थ 'सर्वदर्शन संग्रह' में चार्वाक प्रणाली का संक्षिप्त सार इस प्रकार प्रस्तुत किया है। लोकायतिकं केवलं, इस जीवित जगत में ही विश्वास करते थे, किसी अन्य जगत में नहीं। वे सन्यास, मोक्ष या आत्मा में विश्वास नहीं करते थे। ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे, जो समस्त सृष्टि का स्रष्टा है। आत्मा शरीर ही है जो इन गुणों की अभिव्यक्ति से प्रकट होता है- 'मैं मोटा हूँ', “मैं नौजवान हूँ', 'मैं बड़ा हो गया हूँ', मैं बूढ़ा हो गया हूँ आदि। इस शरीर से भिन्न कुछ और नहीं है। मोरों को कौन रंगों से सजाता है अथवा कौन कोयल से गाना गवाता है ? प्रकृति के अतिरिक्त दूसरा कोई कारण नहीं है। शुचिता तथा ऐसे ही अन्य नियमों को चतुर किन्तु कमजोर लोगों ने बनाया है। सोने और भूमि की दान दक्षिणा की व्यवस्था तथा भोजनों में निमंत्रण की परिपाटी अशुद्ध लोगों में बनायी है, जिनके पेट भूख से चिपके हुये हैं। चार्वाक का मत है कि बुद्धिमान लोगों को इस संसार के सुख उचित साधनों जैसे कृषि पशुपालन, व्यापार, राजनीतिक प्रशासन इत्यादि के जरिये प्राप्त करना चाहिये। चार्वाक साहित्य चार्वाक दर्शन का कोई भी स्वतंत्र प्रामाणिक ग्रन्थ प्राप्त नहीं होता है। भारतीय दर्शन
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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