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________________ के शिष्य थे अतएव चार्वाक नामक व्यक्ति विशेष के द्वारा प्रचारित होने के कारण यह दर्शन चार्वाक दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बृहस्पति के सूत्र जो भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में मिलते हैं इसे डा० उमेश मिश्र ने अपने ग्रन्थ 'भारतीय दर्शन' में उल्लिखित किया है १. 'अथातः तत्वं व्याख्यास्यामः'- अब हम इस मत के तत्वों का निरुपण करेंगे। २. 'पृथिव्यापस्तेजोवायुरिति तत्वानि'- पृथिवी, जल, तेज वायु ये चार तत्व हैं। ३. 'तत्समुदाये शरीरेन्द्रिय विषय संज्ञा'- इन्हीं भूतों के संघटन को शरीर इन्द्रिय ___ तथा विषय नाम दिया गया है। ४. ‘तेभ्यैश्चैतन्यम्'- इन्हीं भूतों के संघटन से चैतन्य उत्पन्न होता है। ५. 'किण्वादिभ्यो मदशक्तिवत् विज्ञानम्"- जिस प्रकार किण्व आदि अन्न के संघटन से 'मादक' शक्ति उत्पन्न होती है उसी प्रकार इन भूतों के संघटन से विज्ञान (चैतन्य) उत्पन्न होता है। ६. 'भूतान्येव चेतयन्ते'- 'भूत ही चैतन्य उत्पन्न करने का कार्य करते हैं। ७. “चैतन्य विशिष्टः कायः पुरुषः'- चैतन्य युक्त स्थूल शरीर ही आत्मा है। ८. “जलबुदबद्रज्जीवा'- जल के उपर जैसे बबूले दिखाई पड़ते हैं और शीघ्र ही ___आप से आप वे नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार जीव है। ६. "परलोकिनोऽभावात परलोकाभावः"- परलोक में रहने वाला कोई नहीं होता अतएव परलोक ही नहीं होता। १०.'मरणमेवापवर्ग:'- मरण ही मोक्ष है। ११. धूर्तप्रलायस्त्रयी स्वर्गोत्पादकत्वेन विशेषाभावात्'- स्वर्ग का सुख धूतों के प्रलापजन्य सुख से भिन्न नहीं है इसलिये स्वर्ग (सुख) को देने वाले तीन वेद वस्तुतः धूर्तों का प्रलाप ही है। 'विज्ञानम् के स्थान पर 'चैतन्यम्' भी प्राप्त होता है।
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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