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________________ अयोध्या-काण्ड में यहाँ तक कहा गया है कि ये लोग असत्य बातों का ही घूम-घूम कर प्रचार करते थे और अपने को ज्ञानी समझते थे । 'लोकायत्' की परिभाषा के विषय में श्री शङ्कराचार्य नें कहा है कि लोकायत् वह है जो देह से भिन्न आत्मा की सत्ता को न स्वीकार करे । "लोकायतिकानामाणि चेतन एव देह इति - शंकराचार्य ।" हरिभद्रसूरि ने अपने ग्रन्थ "षडदर्शन समुच्चय" में चार्वाक के लिये लोकायत शब्द को ही प्रयुक्त किया है। 'लोकायतावदन्त्येयम्... । ( ष०द०समु० – १,८) मनुसंहिता तथा अन्य पौराणिक ग्रन्थ में भी इस मत का उल्लेख मिलता है। वात्स्यायन नें अपने 'वात्स्यायन सूत्र' नामक ग्रन्थ में चार्वाक् के लिये लोकायत् शब्द का ही प्रयोग किया है 'बरं साशयिकान्निष्काद सांशयिकः कार्षापण इति लोकायतिकाः । ( वा०सू०) श्री वाचस्पति मिश्र नें अपने ग्रन्थ "तत्त्वकौमुदी' में प्रमाण के सन्दर्भ में लोकायत् का उल्लेख किया है श्री मिश्र ने अनुमान को अप्रमाण मानने वालों को "लोकायतिक” कहा है –“अनुमानमप्रमाणमितिलोकायतिका' (त० कौ०) संभवतः प्रत्यक्ष को ही एक मात्र प्रमाण मानने के कारण इस दर्शन का नाम लोकायत् (लोक+आयत्) पड़ा। चार्वाक दर्शन सर्वाधिक प्राचीन दर्शन है इसकी प्राचीनता का प्रमाण इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि वेद, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, स्मृति, पुराण आदि सभी शास्त्रों में यह मत अत्यन्त प्रचलित था । सर्वाधिक लोकप्रियता होने के कारण इस दर्शन की "लोकायत्" संज्ञा सार्थक है। चार्वाक व्यक्ति विशेष और सम्प्रदाय विशेष दोनों का ही नाम हो सकता है । 'लोकायत्' कहलाने वाले दर्शन के सर्वप्रथम आचार्य चार्वाक हुये जो सुरगुरु बृहस्पति अयोद्धयाकाण्ड - १००- ३८-३६ 44
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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