SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संवाद में उल्लेख है। एक मत के अनुसार शुक्राचार्य की अनुपस्थिति में दानवों को बृहस्पति ने इस मत का उपदेश दिया था। यह मत पहले सूत्रों में रचित था अत एव इन सूत्रों को "बार्हस्पत्यसूत्र" भी कहते हैं। ईश्वर और वेद के प्रामाण्य का सर्वथा खण्डन करने के कारण यह नास्तिक दर्शन की श्रेणी में गिना जाता है। यद्यपि बौद्ध और जैन को भी भारतीय-दर्शन में नास्तिक-दर्शन की उपाधि से विभूषित किया जाता है किन्तु नास्तिकों में अग्रणी होने के कारण 'चार्वाक-दर्शन’ को "नास्तिक शिरोमणि" दर्शन समझा जाता है। कुछ लोगों का मत है कि चार्वाक नामक ऋषि ने जिनकी चर्चा महाभारत में है, इस मत को चलाया। कुछ विद्वानों का मत है कि चार्वाक किसी व्यक्ति का नाम नहीं है यह शब्द 'चर्व धातु से बना है, जिसका अर्थ है "चबाना" अर्थात् जो व्यक्ति ईश्वर, आत्मा, परलोक तथा सारे आध्यात्मिक तथा नैतिक मूल्यों को चबा जाय, उसे चार्वाक कहते हैं। अथवा यह शब्द 'चारूवाक' से बना है क्योंकि चार्वाक से तात्पर्य मधुर वचन से है। कुछ विद्वानों का मत है कि ऋग्वेद में भी इस दर्शन का उल्लेख मिलता है। बृहदारण्यक उपनिषद् में भी इस मत का उल्लेख मिलता है इस उपनिषद् में याज्ञवल्क्य अपनी पत्नी मैत्रेयी को इस मत का उपदेश दिया है कि इन्हीं पांच भूतों के मिलने से ज्ञान उत्पन्न होता है और फिर नष्ट हो जाता है और मृत्यु के उपरान्त ज्ञान नहीं रह जाता है। "एतेभ्यो भूतेभ्यः समुत्थाय तान्येवानुविनश्यति न प्रत्येसंज्ञास्तीति। (बृहदा० २/४/१२) बाल्मीकि रामायण में भी लोकायत ब्राहमणों का उल्लेख किया गया है "क्वचिन्न लोकायतिकान ब्रह्मणांस्तात सेवसे"। (२/१००/३८) 'पिब् जाद च जात शोभने । (प्रच० २/५०)
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy