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________________ दार्शनिक सूत्रों का निर्माण होने लगा था, इसी संघर्ष के समय दर्शनों का पुनः वर्गीकरण हुआ होगा ऐसा अनुमान किया जाता है। छान्दोग्य उपनिषद् के सातवें अध्याय में नारद और सनद कुमार संवाद यह स्पष्ट होता है कि अन्धकाल में अर्थात उपनिषदों के पूर्व भी शास्त्रों का वर्गीकृत रूप अवश्य विद्यमान थे। क्योंकि यदि पृथक वर्गीकृत न होता तो नारद किस प्रकार शास्त्रों को पृथक गिना सकते थे। किन्तु शास्त्रों के स्वरूप के संबंध में स्पष्ट ज्ञान प्राप्त नही होता है किन्तु व्यवस्थित वर्गीकरण उपनिषदों के बाद का हैं। अक्षपाद गौतम के 'न्याय सूत्र' नामक ग्रन्थ लिखने के पीछे मुख्य रूप से दो उद्देश्य निहित था। १- एक तो बौद्धों के साथ साथ तर्क वितर्क करने के लिए और दूसरा वैदिक मंत्रों के अभिप्राय को सुरक्षित रखने के लिए। इसी अभिप्राय से जैमिनी ने भी "मीमांसा सूत्र" की रचना की। इस प्रकार अन्य दार्शनिक सूत्र ग्रन्थों की रचना हुई होगी। भारतीय दर्शन का मुख्य रूप से विभाजन दो विधाओं में किया गया है १- आस्तिक विधा। २- नास्तिक विधा । अब प्रश्न यह है कि इस वर्गीकरण में कितने और कौन कौन से दर्शन बनें? इस संबंध में "षड्दर्शन" का नाम लिया जाता है। परन्तु षडदर्शन के अन्तर्गत कौन -कौन से दर्शन गिने जा सकते हैं इस पर विद्वानों में मतभेद हैं। पुष्पदन्त ने शिवमहिम्नस्त्रोत में सांख्य, योग, पशपतिमत, तथा वैष्णव, कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में सांख्य योग तथा लोकायत का उल्लेख किया है। सर्वसिद्धान्तसंग्रह में शङ्कराचार्य ने लोकायत, आर्हत बौद्ध (वैभाषिक, सौत्रान्तिक, योगाचार तथा माध्यमिक) वैशेषिक न्याय भट्ट और प्रभाकर मीमांसा, सांख्य पतंजलि, वेद व्यास तथा वेदांत, ग्यारहवीं सदी की पूर्ववर्ती जयन्त भट्ट ने मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, अर्हत, बौद्ध तथा चार्वाक । बारहवीं सदी के हरिभद्र सूरि ने अपने ‘षडदर्शन समुच्चय' में बौद्ध न्यायिक, कपिल, जैन, वैशेषिक तथा जैमिनि का -- - ---- 37 - -- -
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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