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________________ उल्लेख किया है। तेरहवीं सदी के जिनदत्त सूरि ने अपने षडदर्शन समुच्चय में जैन मीमांसा बौद्ध, सांख्य, शैव तथा नास्तिक का वर्णन किया है। चौदहवीं सदी के राज शेखर सूरि ने जैन सांख्य, जैमिनियोग (न्याय) वैशेषिक तथा सौगत का उल्लेख किया है। प्रसिद्ध काव्यों के टीकाकार मल्लिनाथ के पुत्र ने पाणिनि, जैमिनि, व्यास, कपिल, अक्षपाद तथा गौतम को वर्णित किया है। 'सर्वमत संग्रह' के रचयिता ने भी मीमांसा, सांख्य, तर्कबौद्ध अर्हत तथा लोकायत का उल्लेख किया है। माधवाचार्य ने अपने ग्रंथ 'सर्वदर्शन संग्रह' में चार्वाक दर्शन बौद्ध, जैन, रामानुज दर्शन, पूर्णप्रज्ञ (माध्व) दर्शन, पाशुपत दर्शन, शैव दर्शन, प्रत्याभिज्ञा दर्शन (त्रिक दर्शन काश्मीर शैव मत) औलूक्य दर्शन (वैशेषिक) अक्षपाद दर्शन (न्याय) रसेश्वर दर्शन, आयुर्वेद दर्शन, जैमिनि, पाणिनि सांख्य, पतंजलि और शांकर दर्शन में इन षोडश दर्शनों का उल्लेख है। मधुसूदन सरस्वती ने 'सिद्धान्त विन्दु' तथा 'शिवमहिम्नस्त्रोत' की टीका में न्याय, वैशेषिक, कर्म मीमांसा, शारीरिक मीमांसा, पातञ्जल, पंचरात्र, पाशुपत, बौद्ध, दिगम्बर, चार्वाक, सांख्य और औपनिषद आदि का वर्णन मिलता है|आस्तिक और नास्तिक पदों को परिभाषित करने का एक प्रमुख आधार "वेद प्रामाण्य की स्वीकृति और अस्वीकृति से है। वेदों में आस्था रखने वाले या श्रुति को प्रमाण मानने वाले दर्शन आस्तिक दर्शन हैं तथा वेदों की निन्दा करने वाला और श्रुतियों का विरोध करने वाला दर्शन नास्तिक दर्शन कहलाता है। ___ वेदानुयायी और वेदविरोधी परम्परा के क्रमशः ब्राह्मण परम्परा और श्रमणपरम्परा भी कहा जाता है। आस्तिक दर्शनों के अन्तर्गत 'षड्दर्शन' आता है इसमें न्याय, सांख्य, मीमांसा, योग, वैशेषिक, वेदान्त की गणना की जाती है। नास्तिक दर्शन भी एक अन्य 'योऽवमन्यते ते मूलहेतुशास्त्रनयाद द्विजः । स साधुभिर्वहिः कार्यो नास्तिको वेद निन्दकः।। (मनु०२/११) 38
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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