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________________ उपनिषद् काल में हम देखते हैं कि ऋषि मुनि लोग बिना कठिनाई के सम्पूर्ण स्वरूप को सरलता से समझ लेते थे। इसलिए उस समय सभी विचारधाराओं के होने पर भी विचारों के वर्गीकरण की आवश्यकता नहीं पड़ी। क्योंकि उन्हें तत्व से संबंधित आक्षेपों के समाधान करने का तथा विरोधी पक्षों के साथ तर्क वितर्क करने का कोई विशेष अवसर नही प्राप्त हुआ। इसलिए उपनिषद् में वर्णित इस तत्व के स्वरूप का विश्लेषण कर भिन्न-भिन्न क्रम से पृथक-पृथक उनके वर्गीकरण का प्रयोजन पहले नहीं हुआ। यह इतना तो तय है कि किसी भी विषय का वर्गीकरण तभी किया जाता है जब उसको समझने में कोई कठिनाई उपस्थित हो रही हो या कोई अन्य प्रयोजन या उद्देश्य हो। सम्भवतः यही कारण रहा होगा कि विभिन्न दृष्टिकोण से साक्षात देखे हुए सम्पूर्ण तत्व उस समय तक उपनिषदों में छिन्न-भिन्न रूप में पड़ रहे जब तक कि पूर्व पक्षी और उत्तर पक्षी मत समक्ष नही आया। किन्तु इस प्रकार की परिस्थिति अधिक समय तक न रह सकी, क्योंकि इसके बाद तर्क प्रवीण जिज्ञासुओं का आविर्भाव होने लगा। इस समय वेदों के ऊपर आरोप लगने शुरू हो गये तथा वेदों के विरूद्ध मतों का प्रचार वैदिक जगत में होने लगा। इससे समाज में विचलन की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। इस स्थिति से निपटने के लिए तथा एक बार फिर वेद तथा वैदिक धर्मों की रक्षा के लिए उपनिषदों का सहारा लेना आवश्यक हो गया था। इन उपनिषदो में से तत्वों को खोजकर आक्षेपों के निवारण के लिए सामग्री एकत्र की गयी। तत्वों को श्रृंखला बद्ध करने का प्रयत्न भिन्न भिन्न दृष्टिकोणों से होने लगा। इन तत्व विचारों को समन्वय की दृष्टि से सोपान परम्परा के रूप में शृंखलाबद्ध बनाकर प्रतिपक्षियों के साथ तर्क वितर्क करने के लिए सब तरह से एकत्रित किया गया। किन्तु इस प्रकार की बातें उपनिषदों के बाद देखने को मिलती हैं। इस तर्क-वितर्क वाद-संवाद से 36
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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