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________________ आत्मचिन्तन की तरफ प्रेरित करते हैं। 'आत्मावाऽरे द्रष्टव्यः' यह उपनिषदीय मंत्र भारतीय दर्शन का निर्धारक रहा है। परिणामतः भारतीय चिन्तन का झुकाव आध्यात्म की ओर अग्रसर हुआ है आध्यात्मवाद से तात्पर्य है 'आत्मा के विषय में चिन्तन-मनन या आत्मविषयक सिद्धान्त'। किन्तु इससे यह तात्पर्य कदापि नहीं लगाना चाहिए कि भारतीय दर्शन केवल आध्यात्मवादी है, बल्कि यह आध्यात्मवादी मूल्यों के साथ भौतिकवादी मूल्यों को भी महत्व देता है। डा० राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन नामक अपनें पुस्तक मे लिखा है कि "भारत में धर्म संबन्धी हठधर्मिता नहीं है धर्म एक युक्ति-युक्त संश्लेषण है जो विचारों का संग्रह करता रहता है। अपने आप में इसकी प्रकृति परीक्षणात्मक और अनन्तिम है। और यह वैचारिक प्रगति के साथ कदम मिलाकर चलने का प्रयास करता है। यह सामान्य आलोचना कि भारतीय विचार बुद्धि पर बल देने के कारण दर्शन शास्त्र को धर्म का स्थान देता है। भारत में धर्म के युक्ति यूक्ति स्वरूप का समर्थन करती है। इस देश मे कोई भी धार्मिक आन्दोलन ऐसा नही हुआ जिसने अपने समर्थन मे दार्शनिक विषय का विकास भी साथ-साथ न किया हो।" भारतीय दर्शन की एक समान्य विशेषता यह भी है कि यह जीवन केन्द्रित दर्शन है भारतीय दर्शनिक विचारधाराओं में जीवन की चरम समस्याओं के समाधान को सर्वाधिक महत्व दिया गया है तथा मानसिक जिज्ञासा की शान्ति को दर्शन का अन्तिम लक्ष्य नहीं माना गया है। इस प्रकार भारतीय दार्शनिक विचारधाराओं की उत्पत्ति एवं विकास जीवन मे ही हुआ। आध्यात्मिकता को अधिक महत्व देने के कारण ही भारतीय दर्शनिक विचार धाराओं की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण आध्यात्मिक असंतोष ही रहा है इस आध्यात्मिक असंतोष नें भारतीय दार्शनिक विचारधाराओं की उत्पत्ति में विशेष योगदान 'डा० राधाकृश्णन- पुस्तक भारतीय दर्शन भाग (१) पृ० २०-२१ 29
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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