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________________ दिया है। रोग, मृत्यु, बुढ़ापा, ऋण आदि दुःखो के फलस्वरूप मानव मन में सर्वदा अशान्ति का निवास रहता है। बुद्ध का प्रथम आर्यसत्य विश्व को दुःखात्मक बतलाता है। उन्होंने रोग, मृत्यु, मिलन, वियोग, आदि को दुःख कहा जीवन के हर पहलू में मानव दुःखों का ही दर्शन कराता है उनका यह कहना कि दुखियों में जितना आँसू बहाया है उसका पानी समुद्र जल से भी अधिक है जगत के प्रति उनका दृष्टिकोण प्रस्तावित करता है बुद्ध के प्रथम आर्यसत्य से सांख्य, योग, न्याय वैशेषिक शंकर, रामानुज, जैन आदि सभी दर्शन सहमत है भारतीय दर्शनों में विश्व की सुखात्मक अनुभूति को भी दुःखात्मक कहा है। सांख्य में तो यहां तक कहा है कि सुख भी दुःख ही है। क्योंकि सुख सत्वगुण का कार्य है। यह सत्य है कि भारतीय दार्शनिक विचारधाराओं की उत्पत्ति आध्यात्मिक असंतोष के परिणामस्वरूप हुई है परन्तु भारतीय दार्शनिक विचारधाराएँ न तो निराशावादी हैं और न तो पलायनवादी। भारतीय दर्शन का अन्तिम लक्ष्य आध्यात्मिक आनन्द की शाश्वत प्राप्ति है। पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय दर्शन को निराशावादी होने का आरोप लगाया है किन्तु यह आक्षेप उचित नहीं है क्योंकि भारतीय दर्शन को निराशावादी इसलिये नहीं कहा जा सकता है कि यह आध्यात्मवाद से ओत-प्रोत है आध्यात्मवादी दर्शन को निराशावादी कहना गलत है। भारतीय दर्शन के निराशावाद का विरोध भारत का सहित्य करता है। भारत के समस्त सम-सामयिक नाटक सुखान्त है। जब भारत के साहित्य में आशावाद का संकेत है। तो फिर भारतीय दर्शन को निराशावादी कैसे कहा जा सकता है? भारत का दार्शनिक विश्व की वस्तुस्थिति को देखकर विकल हो जाता है। इस अर्थ में वह बिदी है। परन्तु वास्तव में निराश नही हो पाता है। इससे प्रमाणित होता है कि निराशावाद भारतीय दर्शन का आरम्भ है परन्तु उसका अन्त आशावाद में होता है। 30
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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