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________________ व्यक्ति कोवण करना चाहिये, श्रुतिवाक्यों से मनन करना चहिये, तार्किक युक्तियो से निदिध्यासन करना चाहिये और योग प्रतिपादित उपायों के द्वारा निरन्तर ध्यान करना चाहिये क्योंकि आत्मा के दर्शन, श्रवण, मनन तथा ध्यान से ही सब कुछ जाना जा सकता है। "आत्मनोवाऽरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेदं सर्व विज्ञातं भवति ।" (बृहदा० २१/८) आत्मा साधन के इन त्रिविध उपायों में मुख्य उपाय मनन का निरूपण भारतीय दर्शनों की सहायता से ही किया जा सकता है। इसलिये दर्शन के साथ भारतीय धर्म का नितान्त घनिष्ठ सम्बन्ध है ये एक दूसरे के परस्पर पूरक भी हैं। इस प्रकार दर्शन का मुख्य प्रयोजन मरणधर्मा मनुष्य को अमर बना देना है। अमरतत्व किसी प्रकार का साधारण लाभ न होकर असाधारण लाभ है। इसको प्राप्त कर लेने के बाद कुछ भी प्राप्तव्य नहीं रह जाता है। अतः यह प्राप्तव्य की प्राप्ति है। क्योंकि ऐसा नया कुछ नहीं होता है। बल्कि आज्ञानता के कारण ज्ञात नहीं हो पाता है। सभी प्रकार के बन्धनो से सर्वथा, सर्वदा विनाश है, अतः मोक्ष कहलाता है। यह मृत्यु नहीं वरन् मृत्यु पर विजय प्राप्त करना है। मृत्यु तो शरीर का अन्त है और मोक्ष जन्म-मरण का अन्त है। जन्म और मृत्यु के पाश मे पड़ा हुआ मनुष्य, पशु-पक्षी, मनुष्य देवयोनियों में भटकता फिरता है। और विभिन्न शरीर को धारण करता हुआ भ्रमण करता है। किन्तु जब अमरत्व का ज्ञान हो जाता है तब तक शोक सागर को पार कर जाता है- "तरति शोक आत्मवित्" (छान्दो० ४/१/३) श्रोतव्यः श्रुतिवाक्येभ्यो मन्तव्योपत्तिभिः । मत्वा तु सततं ध्येय एते दर्शनहेतव ।। 18
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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