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________________ मुण्डकोपनिषद् में बतलाया गया है कि उस पारावर परमात्मा का साक्षात्कार कर लेने पर हृदय की ग्रन्थि टूट जाती है। सारे संशय नष्ट हो जाते हैं तथा समस्त कर्म क्षीण हो जाते हैं। ईशोपनिषद् में कहा गया है कि उस अवस्था में एकत्व देखने वाले पुरूष को शोक और मोह नहीं हो सकता है- "तत्र कः मोहः क शोक एकत्वमनुपश्यतः" (ईशोप०७)। मोक्ष परमानन्द की प्राप्ति है और इस परमानन्द का साधक और सहायक ज्ञान ही दर्शन कहलाता है। दर्शन ही सम्यक ज्ञान है। और सम्यक ज्ञान ही मोक्ष का साधक है। श्रुति के अनुसार सच्ची विद्या मोक्ष प्राप्ति में सहायक है। अर्थात् यथार्थ विद्या से अमृतत्त्व की प्राप्ति होती है। –“विद्यया अमृतमश्नुते" (ईशोप० ११) श्रुति, स्मृति आदि मे दर्शन का मुख्य प्रयोजन सांसारिक आवागमन से मुक्ति है। महात्मा मनु ने दर्शन को सम्यक दर्शन मानते है और इसका प्रयोजन आवागमन अवरोध स्वीकार करते हैं । भारतीय दर्शनों का काल विभाजन भारतीय दर्शन में गौतम बुद्ध (४८८ ई० पूर्व-५६८ ई० पूर्व) और शङ्कराचार्य (७८८ ई०) युगान्तकारी महापुरुष हुये हैं। इन दोनों को सीमा मानने से भारतीय दर्शन के इतिहास को निम्नलिखित युगों बाटा जा सकता है। प्रथम युग बुद्धपूर्व युग है- इसमे वेद, उपनिषद्, सांख्य, चार्वाक और जैन तीर्थंकरो के दर्शन आते है। इस काल का सांख्य साहित्य उपलब्ध नहीं है। जैन धर्म के इस काल में दार्शनिक सूत्रों और भाष्यों की रचना नहीं हुई। इस काल में महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों की भी रचना हो रही थी किन्तु समाप्त नहीं हुआ था। ' भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशया. । क्षीयन्ते चास्य कर्मणि तस्मिन्दृष्टे पराऽवरे ।। (मु० उप० २/२/८) २ सम्यक दर्शनं सम्पन्नः कर्मभिर्निबध्यते। दर्शन विहीनस्तु संसारं प्रतिपद्यते ।। (मनुसंहिता ६/७४) 19
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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