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________________ दर्शन का विषय इस प्रकार भारतीय दर्शन के अध्ययन से यह निःसन्देह स्पष्ट होता है कि दर्शन का विषय बाह्य दृश्यों का अवलोकन ही नहीं वरन् आन्तरिक दृष्टि से तत्त्व-बोध भी करना है। इस प्रकार इसका विषय भी बाह्य ही नहीं वरन् आन्तरिक आत्मा है। इसलिए दर्शन को "आत्मदर्शन" भी कहा जाता है क्योंकि यह आत्मसाक्षात्कार का एक मुख्य कारण है। आत्म-तत्त्व को ही भारतीय दर्शन में परम-तत्त्व तथा परम-सत्य के पर्याय से भी उद्बोधित किया जाता है। इस परम-तत्त्व को सभी आस्तिक दर्शनों में अनेक नामों से इङिगत किया है- यथा यह अजर, अमर, अमृत और सर्वथा असंसारिक सर्वव्यापी, ज्योतिस्वरूप, नित्य, निरवयव और निर्विकारी और शुद्ध रूप चैतन्य है। आत्मा से सम्बद्ध इसी बात को बृहदारण्यक में बड़े सुन्दर ढंग से व्यक्त किया गया है। जिसमें यह कहा गया है कि यह स्थूल (भौतिक) और सूक्ष्म (मानसिक) इन्द्रियों से भिन्न है। जिसका वर्णन करने में वाणी भी असमर्थ है यह वाणी को अभिव्यक्ति की शक्ति प्रदान करता है जिसे मन ग्रहण नहीं कर सकता और जो मन में ग्रहण करने वाली शक्ति प्रदान करता है। इस प्रकार यह आत्म-तत्त्व शरीर का स्वामी और इन्द्रियों का अधिष्ठाता है। इस आत्म-तत्त्व का ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान है और आत्म-तत्त्व का ज्ञाता ही सच्चा दार्शनिक और सम्यक् द्रष्टा है। यह परमसत् आत्म-तत्त्व भौतिक जड़-जगत की अनात्म, अतत्व और असत्य संसारिक ज्ञान से सर्वथा भिन्न है। अमरत्व से अतिरिक्त सभी सांसारिक वस्तुएँ अनात्म, अतत्त्व और असत्य हैं। मैं शरीर नहीं शरीरी हूँ, देह नहीं देव हूँ, जीव नहीं शिव हूँ। इस प्रकार आन्तरिक और आध्यात्मिक आत्मतत्व का ज्ञान ही दर्शन का मुख्य विषय है। बृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है कि- 'आत्मावरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यः मन्तव्यः निदिध्यासितव्यः' । 16
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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