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________________ का तो यहाँ तक कहना है कि "जीवन ज्ञान के लिये नहीं है बल्कि ज्ञान जीवन के लिये है। "अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय विचारधारा प्राणिमात्र के सुख एवं कल्याण के लिये विकसित हुई। इसकी अभिव्यक्ति "सर्वे भवन्तु सुखिनः" "वसुधैव कुटुम्बकम” जैसे उद्घोषो में होती है। इस प्रकार भारतीय दर्शन का जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। भारतीय विचारकों ने अपने विचारों को इस मंत्र से उद्घोषित किया कि "दर्शन वही है जो जीवन की अभिव्यक्ति का साधक है और जो जीवन का साधक नहीं है वह दर्शन नहीं है। इसको एक उदाहरण के द्वारा सुगमता से अभिव्यक्त किया जा सकता है। जिस प्रकार भिन्न भिन्न नदियों के भिन्न-भिन्न मार्ग होते है, किन्तु गंतव्य (मंजिल) लक्ष्य सागर होता है, उसी प्रकार विचारधाराओं का केवल एक लक्ष्य है प्रणिमात्र का कल्याण । विभिन्न क्षेत्रों में धर्म-दर्शन परस्पर पूरक भी है। दर्शन सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है। जबकि धर्म व्यवहारिक है इस प्रकार सिद्धान्त के अभाव में व्यवहार का कोई महत्त्व नहीं होता है। जहाँ तक व्यक्ति तथा समाज के जीवन का प्रश्न है। इसे धर्म तथा दर्शन दोनो ही ऊँचा उठाने का प्रयास करते हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि कहीं-कहीं धर्म व्यक्ति तथा समाज को छति पहुँचायी है। परन्तु अच्छा धर्म तथा दर्शन सदैव मनुष्य एवं समाज के लिये हितकर ही होता है। यदि कहा जाय परम सत्य की खोज के लिए धर्म तथा दर्शन को परस्पर सहयोग करना होगा तो अनुचित नही होगा। निर्विवाद रूप से तथा अक्षरशः यह भी सत्य है कि जहाँ दर्शन का अन्त होता है वहाँ धर्म का प्रारम्भ होता है। बेकन ने लिखा है कि, "यह सच है कि दर्शन का अल्पज्ञान मनुष्य को नास्तिकता की ओर ले जाता है, लेकिन दर्शन की गहराई में उतरने पर व्यक्ति धर्म की ओर लौट आता है।" इस प्रकार धर्म को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए धर्म की नींव मजबूत तथा बुद्धि का सुदृढ़ आधार आवश्यक हैं।
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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