SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 297
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रखा है ये वे ही पद्मपाद है जो आपकी अपूर्व सेवा करके आपकी कृपा से अद्वैत ज्ञान में पूर्ण रूप से प्रतिष्ठित हुए है। ये जितेन्द्रिय और पूर्ण ब्रह्मज्ञानी है। द्वैतभाव का इनमें लेश भी नहीं है। पद्मपाद के अभाव में यह काम त्रोटक को भी सौंपा जा सकता है। जिन पर सरस्वती की अद्भुत कृपा है। अपनी कठिन तपश्चर्या और अलौकिक गुरु भक्ति से आपकी महती अनुकम्पा अर्जित की है। इसके बाद पद्मपाद ने आचार्य से प्रार्थना की-'यह हस्तामलक आपके भाष्य पर वार्तिक लिखने में सर्वथा समर्थ है। सभी शास्त्रों का ज्ञान उन्हें 'हस्तामलकवत्' है। उनकी इसी विशिष्टता पर मुग्ध होकर आपने 'हस्तामलक नाम रखा था। __पद्मपाद का निवेदन सुनकर आचार्य ने कहा वत्स पद्मपाद! तुम्हारी बात हस्तामलक के सम्बन्ध में यथार्थ है पर इसमें कठिनाई यह है कि वह निरन्तर अर्तमुखी रहता है। सांसारिक प्रपञ्चों से वह सर्वथा विमुक्त है। उसकी वृत्ति बर्हिमुख नहीं है। ब्रह्मज्ञान के अद्वैततत्त्व में सदैव प्रतिष्ठित रहता हे उसे सारी वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त है फिर भी वह अपनी नितान्त अर्न्तमुखता के कारण वार्तिक लिखने के योग्य नहीं है। पर मुझे आशंका है कि सुरेश्वर के बिना वार्तिक रचना की योजना असफल हो जायेगी। शिष्य की बात सुनकर आचार्य ने कहा- इसमें सन्देह नहीं है कि पद्मपाद बड़ा ही योग्य और विद्वान है, ब्रह्मज्ञानी भी है। अतः मेरी राय है कि पद्मपाद इस भाष्य पर 'वृत्ति लिखे और सुरेश्वर वार्तिक । वार्तिक लिखने के लिये सुरेश्वर स्वयं प्रतिज्ञाबद्ध है। इसके बाद आचार्य शङ्कर ने सुरेश्वराचार्य को एकान्त में बुलाकर कहा- 'वत्स सुरेश्वर! अभी तुम वार्तिक मत लिखो तुम्हारे गुरु भाईयों को सन्देह है कि सुरेश्वराचार्य वार्तिक लिखने में सक्षम नहीं है क्योंकि सन्यास ग्रहण करने से पूर्व मीमांसा शास्त्र के कर्मकाण्ड के प्रति उनका आग्रह बहुत अधिक था। उनका यह आग्रह अभी छूटा नहीं होगा। 281
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy