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________________ 'मायोपहित ब्रह्म' भी कहा जाता है। ईश्वर माया के द्वारा विश्व की सृष्टि करता है माया ईश्वर की शक्ति है जिसके कारण वह विश्व का प्रपञ्च रचता है। ईश्वर विश्व का कारण है लेकिन स्वयं अकारण है। यदि ईश्वर के कारण को माना जाय तो अनवरत् श्रृंखला चलती जायेगी और अनवस्था दोष प्रसक्त हो जायेगा। ईश्वर को विश्व का स्रष्टा माना जाता है। ईश्वर विश्व का उपादान और निमित्त दोनों कारण है वह स्वभावतः निष्क्रिय है परन्तु माया से युक्त होने के कारण वह सक्रिय हो जाता है। ईश्वर व्यक्तित्वपूर्ण है। वह उपासना का विषय है। कर्म नियम का अध्यक्ष ईश्वर है। ईश्वर ही व्यक्तियों को उनके शुभ और अशुभ कर्मों के आधार पर सुख-दुख का वितरण करता है। ईश्वर कर्मफल दाता है। ईश्वर नैतिकता का आधार है। ईश्वर स्वयं पूर्ण है यह धर्म अधर्म से परे है शंकर ने ईश्वर को विश्व में व्याप्त तथा विश्वातीत माना है। जिस प्रकार दूध में उजलापन अतभूत है वैसे ही ईश्वर विश्व में व्याप्त है। ईश्वर विश्वातीत भी है, जिस प्रकार घड़ी साज की सत्ता घड़ी से अलग रहती है उसी प्रकार ईश्वर विश्व का निर्माण कर अपना सम्बन्ध विश्व से विच्छिन्न कर विश्वातीत रहता है। ब्रह्म परमार्थिक दृष्टि से सत्य है जबकि ईश्वर व्यवहारिक दृष्टि से सत्य है ब्रह्म निर्गुण, निराकार और निर्विशेष है परन्तु ईश्वर सगुण और सविशेष है। ब्रह्म उपासना का विषय नहीं है, परन्तु ईश्वर उपासना का विषय है। ईश्वर विश्व का सृष्टा, पालनकर्ता, संहारकर्ता है, परन्तु ब्रह्म इन गुणों से शून्य है। ईश्वर मायोपहित है, ब्रह्म माया से शून्य है। इस प्रकार ईश्वर और ब्रह्म में यह व्यवहारिक भेद है। अब प्रश्न यह उठता है कि ब्रह्म या ईश्वर के लिये प्रमाण क्या है? शंकराचार्य मानते है कि ब्रह्म के लिये प्रथम प्रमाण श्रुति है जो उसके स्वरूप का वर्णन विशद रूप 263
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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