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________________ से करती है। द्वितीय प्रमाण स्वानुभूति है जिसके आधार पर महर्षियों ने अनुभव किया कि उनकी आत्मा ही ब्रह्म है- 'अयमात्मा ब्रह्म' या मैं ही ब्रह्म हूँ, 'अहं ब्रह्मास्मि' । जीव विचार ब्रह्मसूत्र शांकर भाप्य के अनुसार जब आत्मा का प्रतिबिम्ब अविद्या में पड़ता है तब वह जीव हो जाता है। इस प्रकार जीव आत्मा का आभासमात्र है। जहां आत्मा की परमार्थिक सत्ता होती है वहां जीव को व्यावहारिक सत्ता होती है। जब आत्मा शरीर, इन्द्रिय-मन इत्यादि उपाधियों से सीमित होता है तब वह जीव हो जाता है। आत्मा एक है जब कि जीव-भिन्न शरीरों में अलग-अलग है इससे सिद्ध होता है कि जीव अनेक है। जीव संसार के कर्मों में भाग लेता है। शुभ-अशुभ के कारण वह पुण्य और पाप का भागी होता है। जीव ज्ञाता, कर्ता अनुभविता भी होता है क्योंकि सुख-दुख की अनुभूति जीव को होती है। शंकर ने जीव को बन्धन-ग्रस्त माना है अपने प्रयासों से जीव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। शरीर के नष्ट हो जाने के बाद जीव आत्मा में लीन हो जाता है। जीव आत्मा का वह रुप है जो देह से युक्त है। उसके तीन शरीर है- स्थूल शरीर, लिंग शरीर, कारण शरीर। जब आत्मा का अज्ञान के वशीभूत होकर बुद्धि से सम्बन्ध होता है तब आत्मा जीव का स्थान ग्रहण करती है। जिस प्रकार एक ही आकाश उपाधि भेद के कारण घटाकाश, मठाकाश इत्यादि रुपों में दिखाई पड़ता है उसी प्रकार एक ही आत्मा शरीर और मनस् की उपाधियों के कारण अनेक दीख पड़ता है। जीव और ईश्वर ''तथाक्षराद विविधा सोम्य भावाः, प्रजायन्ते तत्र चैवा पियन्ति ।। मुण्डकोपनिषद् २/१/१ 264
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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