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________________ गौड़पादाचार्य के शिष्य एवं शङ्कराचार्य के गुरु गोविन्दपाद नर्मदातट पर निवास करते थे तथा एक महान योगी थे। इनके विषय में प्रसिद्ध है कि इनका स्थूल शरीर एक सहस्र वर्ष तक इस संसार में रहते हुये भी दिव्य था । स्वामी विद्यारण्य का मन्तव्य है कि गोविन्दपाद भाष्यकार पतंजलि के रूपान्तर हैं। राजवाणे कथा के अनुसार जिनसेन, गुणभद्र तथा शङ्कराचार्य के गुरु गोविन्दपाद समसामयिक थे। इस कथा के अनुसार जिनसेन गोविन्दपाद के परम गुरु थे क्योंकि इस ग्रन्थ में उल्लेख मिलता है कि गुणभद्र जिनसेन के शिष्य थे। और गोविन्दपाद गुणभद्र के शिष्य थे । यह मत असंदिग्ध है कि जिनसेन ने ७०५ शकाब्द अर्थात् ७८३ सन्में हरिवंश की रचना की थी। इस ग्रन्थ से यह पता चलता है कि जिनसेन, गुणभद्र, एवं गोविन्द ये तीनों आचार्य धाराधिप भेज के सभा पंण्डित थे । किन्तु उक्त कथन कितना प्रासंगिक है इसपर विवाद है । गोविन्दपाद रचित कोई भी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता है। 'रस हृदय' नामक एक ग्रन्थ गोविन्दभागवत् पाद द्वारा रचित माना जाता है। जिसका विषय रसायनशास्त्र से सम्बन्धित माना जाता है । माधवाचार्य ने अपने ग्रन्थ 'सर्वदर्शन संग्रह में रसेश्वर दर्शन प्रकरण में उक्त ग्रन्थ को प्रामाण्य के रूप में माना है। इस प्रकार गोविन्दभागवत्पाद का ऐतिहासिक विवरण प्राप्त करना अन्यन्त कठिन है परन्तु इतना तो निश्चित है कि गोविन्दपाद शङ्कराचार्य के गुरु थे । इस अध्ययाय में किये गये विवेचन से इतना स्पष्ट है कि ऋग्वेद संहिता से लेकर शंकराचार्य के पूर्ववर्ती आचार्यै के समय में भी अद्वैतवाद के स्पष्ट एवं अस्पष्ट रूप से बीज वर्तमान थे किन्तु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अद्वैतवाद का जितना स्पष्ट एवं सैद्धान्तिक रूप से विकास और उन्नति शंकराचार्य के दर्शन में 1 शंकर दिग्विजय - ५ | ६४ 234
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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