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________________ हुई उतना किसी अन्य दर्शन में नहीं। अद्वैतवाद की एक मजबूत आधारशिला शङकराचार्य के द्वारा ही डाली गयी थी। शङ्करदिग्विजय में वर्णित कथा के अनुसार गोविन्द भागवत्पाद के विषय में जानकारी मिलती है। यथा तमखिलगुण पूर्ण व्यासपुत्रस्य शिष्यात् अधिगतपरमार्थ गौणपादान्महर्षे । अधिजिगमिषुरेष ब्रह्मसंस्थामहं त्वां प्रसृमरमहिमानं प्रापमेकान्तभक्त्या।। (शङ्कर दिग्विजय ५६७) अर्थात् शङ्कराचार्य गोविन्दपाद से विनम्र भाव से बोले कि हे भगवन् मैं आपके पास वेदान्त पढ़ने के लिए अत्यन्त भक्ति भाव से आया हूँ। समाधिस्थ गोविन्दाचार्य के पूंछने पर कि तुम कौन हो तब श्री शङ्कर प्राचीन पुण्य के कारण आत्मज्ञान के सूचक वचनों के द्वारा गोविन्दपाद से बोले- हे स्वामिन्! मैं पृथ्वी नहीं हूँ , न तेज हूँ, न आकाश हूँ, न वायु हूँ और न उनके गुण हूँ और न मैं इन्द्रियाँ हूँ, प्रत्युत् इनसे अवशिष्ट केवल जो परम तत्त्व शिव है वही मैं हूँ। भक्ति पूर्वक की गयी पूजा से संतुष्ट होकर यति-श्रेष्ठ गोविन्द ने उपनिषद के चार वाक्यों के द्वारा ब्रह्मतत्त्व का उपदेश शंकर को दिया। ये चारों महावाक्यों को द्वारा ब्रह्मतत्व का उपदेश शंकर को दिया। ये चारों महावक्य वेदों से सम्बद्ध उपनिषदों से संग्रहीत किये गये हैं और संख्या में चार हैं जो निम्न हैं १. 'तत त्वमसि' (छान्दो० उप०६।८ ७) सामवेद काय यह आत्मा तथा ब्रह्म की एकता का प्रतिपादन करने वाला है। २. प्रज्ञानं ब्रह्म' (एतरेय उपनिषद्५) ऋग्वेद का यह महावाक्य ब्रह्म को ज्ञान स्वरूप बतलाता है। 1 स्वामिन्नहं न पृथ्वी न जलं न तेजो न स्पर्शनो न गगनं न च तद्गुणा वा। नाऽपिइन्द्रियाणपि तु विद्धि ततोऽवसिष्टो यः केवलोऽस्तिपरमः स शिवोऽहमस्मि ।। (शड्कर दिग्विजय ५/६६ 0235
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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