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________________ क्या गौडपाद प्रच्छन्न बौद्ध थे? कुछ आधुनिक विद्वानों ने गौड़पाद पर प्रच्छन्न बौद्व होने का आरोप लगाया है। उनका कथन है कि अद्वैतवाद गौणपाद का अपना सिद्वान्त नही है बल्कि अपने सिद्धान्त की आड़ (ओट) में बौद्ध सिद्धान्त का ही प्रतिपादन किया है। पं० विधुशेखर भट्टाचार्य जिन्होंने गौणपाद के आगम शास्त्र की तुलना शून्यवाद के ग्रन्थों से की है किन्तु गौणपाद ने स्वयं लिखा है कि वे जो कुछ कह रहे है- “नैतद् बुद्धेन भाषितम्” (माण्डू० कारिका ४/६६) गैड़पाद ने प्रच्छन्न बौद्ध न होने का प्रमाण देते हुए लिखा है कि शून्यवाद अद्वयवाद है, अद्वैतवाद नही। इस अन्तर को न समझने के कारण लोगों ने गौणवाद को “प्रच्छन्न बौद्ध” कहा है। वे शुद्ध अद्वैत वेदान्ती है जो शाङ्कर सम्प्रदाय में सम्प्रदायविद आचार्य के रुप में माने जाते है। अतः गौणपाद की माण्डूक्य कारिका अद्वैतवेदान्त का एक मानक ग्रन्थ थे। गोविन्द पाद अद्वैतवेदान्त की गुरु परम्परा अत्यन्त प्राचीन तथा महत्वपूर्ण है। उपनिषदों में आपाततः दीख पड़ने वाले विरोधों को दूर करने तथा मूल सिद्धान्त की व्याख्या करने केलिये महर्षि बादरायण व्यास ने ब्रह्मसूत्रों की रचना की तथा उनके तत्त्व अपने पुत्र शुकदेव को सिखलाये। इन्हीं शुकदेव से गौड़पाद ने अद्वैत कारिकाओं की रचना की। गौडपाद के शिष्य हुये गोविन्दपाद और उनके शिष्य शङ्कराचार्य थे। इस प्रकार अद्वैतशङकर से आरंभ न होकर के अत्यन्त प्राचीन परम्परा से उन्हें प्राप्त हुआ था जैसा कि शङकरदिग्विजयके निम्न श्लोक से स्पष्ट है कि व्यासः पराशरसुतः किल सत्यवत्यां तस्याऽऽत्मजः शुकमुनिः प्रथितानुभावः । तच्छियलमगतः किल गौड़पादो गोविन्दनाथमुनिरस्य च शिष्यभूतः ।। (शङ्कर दिग्विजय ५/१०५) 233
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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