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________________ ववदन्तोऽद्धया ह्ययेवमजाति ख्यापयन्ति ते।। (मा० का० ४/४) माण्डूक्य करिका में कहा गया है कि ये वादी लोग अजात वस्तु का ही जन्म होना स्वीकार करते है किन्तु जो पदार्थ निश्चय ही अजात और अमृत है वह मरणशीलता को कैसे प्राप्त हो सकता है। अजातस्यैव धर्मस्य जातिमिच्छन्ति वादिनः । अजातो ह्यमृतो धर्मो मर्त्यतां कथमेस्यति ।। (मा० का० ४/६) आचार्य गौणपाद ने लिखा है कि - कोई वस्तु न तो स्वतः उत्पन्न होती है और न परतः और न उभयतः । “स्वतो वा परतो वापि न किंचिद् वस्तु जायते। सदसत्सदसद्वापि न किचिद्वस्तु जायते ।। (मा० का० ४/२२) इस कारिका पर नागार्जुन की पुनरावृत्ति स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। इस प्रकार कार्यकारण अनुपपन्न है। कार्य-कारण से अनन्य है, अन्य नहीं। वास्तव में अजाति ही सत्य है। इस प्रकार तर्कतः अद्वैत को स्थापित करते है। आचार्य गौणपाद की महानता यह भी है कि वह स्वयं वैदिक परम्परा के आचार्य होते हुए भी 'अजातिवाद' को स्वीकार करते है। यथा- ख्याप्यमानामजातिं तैरनुमोदामहे वयम् । विवदामो न तैः साधर्मविवादं निबोधत ।। (मा० का० ४/५) गौणपाद का मत है कि- उनका (बौद्धों का) जो अजाति वाद विषयक कथन है उसका हम अनुमोदन करते है। हम उसके साथ विवाद नहीं करते है। आगे चलकर इस अजातिवाद को शङ्कराचार्य ने भी परमार्थ सत्य के रूप में स्वीकार किया है। मायावाद जिस प्रकार स्वप्न में हमें द्वयाभास होता है वैसे जाग्रत अवस्था में भी होता है। 'न स्वतो जायते भावः परतोनैव जायते। न स्वतः परतश्चैव जायते जायते कुतः ।। (म० का०, २१-१३ 229
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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