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________________ 'ओम्' यह अक्षर ही सब कुछ है जो कुछ भूत-वर्तमान और भविष्यत सब कुछ है उसी की व्याख्या है। इसके अतिरिक्त जो कुछ भी त्रिकालातीत वस्तु है वह भी ओंकार ही है। 'ओमित्येतदक्षरमिदं सर्वमिति. ...' आचार्य बलदेव उपाध्याय ने लिखा है- “प्रणव का अर्थ ओम्” है ओम् में चार मात्राएं है। अ, उ, म और अर्द्धमात्र इन मात्राओं से क्रमशः जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय अवस्था का बोध होता है और उनमें जो सत्ता विद्यमान रहती है उसका ही वाचक ओम् है। ओम् का ध्यान ब्रह्म का ध्यान है। परवर्ती आचार्यों ने सोऽहम् से ओम् की निष्पत्ति की है और ओम् का अर्थ बताया है, “मैं ब्रह्म हूँ। आत्मवाद आत्मवाद के सिद्धान्त में गौणपाद स्पष्ट करते है कि आत्मा, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति तुरीय अवस्थाओं से परे है। माण्डूक्योपनिषद में ओंकार की तीन मात्रा अ उ म के द्वारा स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर के अभिमानी विश्व, तैजस् और प्राज्ञ का वर्णन करते हुए उनका समप्टि अभिमानी वैश्वानर, हिरण्यगर्भ, एवं ईश्वर के साथ अभेद किया गया है। इनकी अभिव्यक्ति की अवस्थाएं क्रमशः जाग्रत स्वप्न, और सुषुप्ति है तथा इसके भोग स्थूल, सूक्ष्म और आनन्द है। जाग्रत अवस्था में जीव दक्षिण नेत्र में स्थित रहता स्वप्न की स्थिति में कण्ठ में और सुषुप्ति की अवस्था में हृदय में रहता है इसी का नाम 'प्रपञ्च' है। अजातवा - सत्कार्यवाद और असत्कार्यवाद दोनों का खण्डन करते हुए गौणपाद ने अजातवाद को स्थापित किया है। भूतं न जायते किंचिद अभूतं नैव जायते। 'माण्ड्क्योपनिषद- गीताप्रेस गोरखपुर पृ०७ २ संस्कृत वाङ्गमय का वृहद इतिहास (दशमखण्ड वेदान्त) पृ० ८ प्रधानसम्पादक- पद्मभूषण आचार्य वल्देव उपाध्याय सम्पादक-प्रो० सगम लाल पाण्डेय 128
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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