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________________ ब्रह्म में एकता है। परमार्थवस्था में जीव भी ब्रह्म ही है। इनके मत में अज्ञान और अध्यास दोनों माने जाते है। अविद्या का अनिर्वचनीयत्व और विवर्तवाद स्वीकृत किये जाते है तथा यह सब दृश्यमान जगत न तो सत् है और न असत। किन्तु अनिर्वचनीय स्वीकार किया जाता है। इनके मत में जगत् केवल मायामय तथा संव्यवहार मात्र है। श्री ब्रह्मानन्दी के 'सिद्धं तु निर्वतकत्वात् इस सूत्र का अद्वैत वेदान्त में महान आदर है। टंङ्क आचार्य रामानुज ने अपने ग्रन्थ 'वेदार्थ संग्रह' (पृष्ठ १५४) पर टंक का उल्लेख किया है। टंक विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त के समर्थक प्रतीत होते है। श्री वेंकटनाथ ने अति सम्मान के साथ स्मरण किया है- यथा- "वेदविदुत्तमः सर्वे: बोधायनटकद्रविडगुहदेवकपर्दिभारुचिप्रभृतिभिः ......... _(तत्वमुक्तकलापस्य सर्वार्थ सिद्धौ) नविड़ाचार भारतीय दर्शन के विभिन्न ग्रन्थों में आचार्य द्रविड़ का उल्लेख मिलता है। भगवत्पाद श्री शङ्कराचार्य के द्वारा 'सम्प्रदायवित" 'आगमवित" इत्यादि शब्दों से समादृत ये अद्वैतवेदान्त के महान आचार्य थे। शङ्कराचार्य ने द्रविड़ाचार्य के (त्वात्)' सिद्धंतु निवर्टकत्वात्' सूत्र को उद्धत किया है। शाङ्कर भाष्य के टीकाकार आनन्दगिरि द्रविणाचार्य को अद्वैतवादी मानते है। इनके जीवनकाल के सम्बन्ध में निश्चित मत नही है। टी० ए० श्री गोपीनाथ राय महोदय ने 'हिस्ट्री आफ श्री वैष्णव' नामक ग्रन्थो में इनका स्थितिकाल नवम शताब्दी का पूर्वार्ध माना है। कुछ लोग अष्टम शताब्दी का पहला चरण मानते है। 'वृ० आ० उ०२/१/२० शाङ्कर भाष्य । 'माण्डूक्यकारिका २/३२ तथा ३/२० कारिका । 'सिद्धं तु निवर्तकात्वात्- इत्यागमविदां सूत्रम्। मा० का०, शां० भा० २/३२ 212
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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