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________________ कुप्पूस्वामी शास्त्री ने लिखा कि इनका काल आज भी अनिर्णीत ही है। ब्रह्मानन्दि के छान्दोग्योपनिषद् वाक्य पर द्रविणाचार्य ने एक टीका लिखी थी। वैष्णव सम्प्रदाय के ग्रन्थों में भी द्रविड़ाचार्य का उल्लेख प्राप्त होता है। ___रामानुज ने 'वेदार्थ संग्रह' में आचार्य द्रविड़ का उल्लेख किया है।' यामुनाचार्य ने 'सिद्धित्रय' में लिखा है- 'भगवता वादरायणेन इदमर्थमेव सूत्राणि प्रणीतानि विवृतानि च परिमित गम्भीर भाष्यकृता' | 'भाष्यकृता" शब्द से द्रविड़ाचार्य को इंगित किया है। सर्वज्ञात्म मुनिने 'संक्षेपशारीरक' में द्रविणाचार्य का उल्लेख किया है। इस प्रकार जैसे निर्विशेष अद्वैत सम्प्रदाय में और विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय में दोनों जगह इनका नाम आचार्य के रुप में गिना जाता है। उसी प्रकार दोनों सम्प्रदायों में इनका वाक्य प्रमाण के रूप में उद्धृत किये गये है। अनेक वेदान्त ग्रन्थों में द्रविणाचार्य के वाक्यरूप से जाने गये सत्रह वाक्य प्राप्त होते है। उनमें से छ: वाक्य निर्विशेष अद्वैत ग्रन्थों में तथा ग्यारह वाक्य विशिष्टाद्वैत ग्रन्थों में पाया जाता है। इनका दार्शनिक सिद्धान्त इस प्रकार है- श्री द्रविणाचार्य के मत में परब्रह्म का निर्गुण होना अभीष्ट है। 'संक्षेप शारीरक' में सर्वज्ञात्ममुनि ने वाक्यकार श्री ब्रह्मानन्दी का मत बताकर इस (निर्गुण) का उपपादन किया है। यथा अर्न्तगुणा भगवती परदेवतेति, प्रत्यग्गुणेति भगवानानपि भाष्यकारः । आह स्म यत्तदिह निर्गुणवस्तुवादे, संगच्छते न तु पुनः सगुण प्रवादे ।। (सं० शा० ३/२२१) यहां 'अर्न्तगुणा' इस पद में गुण पद स्वरूपपरक है, देवतापद ब्रह्मपरक है। इसलिये प्रत्यागात्मस्वरुप परदेवता परब्रह्म है। 1 भगवद बोधायनटंक द्रविण... | वेदार्थ संग्रह, पृ० १४८ काशी संस्करण सिद्धित्रये - पृ०५ ___213 .
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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