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________________ ब्रह्मानन्दी विवर्तवाद सिद्धान्त के समर्थक थे। संक्षेपशारीरक में आचार्य ब्रह्मानन्दी के सम्बन्ध में पाँच श्लोक है - जिनसे अद्वैतवाद साधक एक ही श्लोक स्थाली पुलाक न्याय से यहां दिया जा रहा है पूर्वविकारमुपवर्ण्यशनैश्शनैस्तद्, दृष्टिं विसृज्य निकटं परिगृह्य तस्मात्। सर्वविकारमथसंव्यवहारमात्रमद्वैतमेवपरिरक्षतिवाक्यकारः । । सं० शा० ३ - २२० आचार्य ब्रह्मानन्दी के जो आठ वाक्य अद्वैत सम्प्रदाय के भाष्य आदि ग्रन्थों में उपलब्ध होते है। वे श्री ब्रह्मानन्दी के सिद्धान्त के अनुकूल प्रतीत होते है । किन्तु जो बाइस वाक्य विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय के ग्रन्थों में उपलब्ध होते है वे भी अद्वैत सिद्धान्त के बाधक नही बनते है। इनमें बाईस वाक्यों में तेरह वाक्य ब्रह्मसूत्र (१/१/१) के जिज्ञासाधिकरण में ही प्राप्त होते है ये तेरह वाक्य न तो अद्वैत के बाधक है और न विशिष्टाद्वैत के बाधक है। अपितु वे सामान्य रुप से सभी वेदान्त के साधक है। ये प्रायः उपासना के साधक है । इस प्रकार से आचार्य ब्रह्मानन्दी ही श्री शङ्कराचार्य से पूर्ववर्ती अद्वैत वेदान्ताचार्यो में इस प्रकार के सर्वप्रथम आचार्य थे जिनका ग्रन्थ तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु उनके ग्रन्थ के तीस वाक्य वेदान्त के प्रामाणिक ग्रन्थों में आज भी मिलते रहे है। विशिष्ाद्वैत ग्रन्थों में प्राप्य बाइस वाक्य भी अद्वैत सिद्धान्त के प्रतिकूल नहीं है। उपासना की पूर्वावस्था में पर और अपर ब्रह्म के बीच परब्रह्म का सगुण होना अद्वैताचार्यो को इष्ट है। अद्वैत ग्रन्थों में मिलने वाले (ब्रह्मानन्दी के) वाक्य तो अद्वैत के अनुकूल ही है। इन वाक्यों से आचार्य ब्रह्मानन्दी का वेदान्त सिद्धान्त इस प्रकार निश्चित होता है - श्री ब्रह्मानन्दी के मत में ब्रह्मसत् निर्विशेष नित्य एक और चित् रूप है जीव और 211
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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