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________________ अद्वैत वेदान्त के आचार्यो में आचार्य शङ्कर से पूर्व सर्व आचार्य ब्रह्मानन्दी । वेदान्त शास्त्रों में ये नन्दी और आत्रेय नामों से भी विख्यात है। इन्होंने दोग्य उपनिषद का व्याख्यान रूप वाक्य रचा है। यह वाक्य संक्षिप्त रूप है। इसलिए के वाक्य को 'सूत्र' कहा जाता है। अतएव इन्हें छान्दोग्यउपनिषद् की व्याख्याभूत के कर्ता, व्याख्यानभूत भाष्यकर्ता, वाक्यकर्त्ता और वृत्तिकार भी कहते है । यह बात शारीरक की विभिन्न टीकाओं में श्री मधुसूदन सरस्वती, रामतीर्थ, नृसिंहाश्रम और कराचार्य ने अपने ब्रह्मसूत्र भास्कर भाष्य में तथा ब्रह्मसूत्र भाष्य की भामती एवं पतरू में अमलानन्द ने लिखा है - श्री सर्वज्ञात्ममुनि द्वारा इनका वंशपरिचय और द्धान्त में स्पष्ट रूप से उद्धृत किया गया है । आज तक इनका समय निर्णीत नहीं पाया है किन्तु श्री शङ्कराचार्य, त्रोटकाचार्य, सर्वज्ञात्ममुनि, रामानुजाचार्य, प्रकाशात्म, दर्शन तथा वेंकटनाथ आदि विद्वानों ने आदरपूर्वक इनके नाम और मत का उल्लेख या है। यथा - माण्डूक्य कारिका के वैतथ्य प्रकरण में आचार्य शङ्कर ने ब्रह्मानन्दी नाम लिया है- 'सिद्धं तु निवर्तकत्वादित्यागम् विदां सूत्रम् ।' (मा०का० वै० प्र० ३२) चार्य ब्रह्मानन्दी का वाक्य ग्रन्थ अब नही मिलता है। जहां-तहां वेदान्त ग्रन्थों में नके वाक्य तथा उनके व्याख्यान पाये जाते है। इसके आधार पर कहा जा सकता है ; उनका सिद्धान्त निर्विशेष अद्वैतवाद ही है। ब्रह्मानन्दी जीव और ब्रह्म में एकता नते है। इसका स्पष्टीकरण स्वामी विमुक्तात्मा ने इष्टसिद्धि में तथा श्री ज्ञानोत्तम ने ट सिद्धि के विवरण में किया है- "सिद्धं तु निवर्तकत्वादिति चोक्तं वाक्यकारैः” ष्टसिद्धौ पृ० ७२) । आचार्यटङ्कभर्तृप्रपञ्चभर्तृमित्रहरिब्रह्मदत्तशङ्कर श्रीवत्सांकभाष्करादिविरचितसितासित विविध निवन्धन नाचार्य के सिद्धित्रय पृष्ठ ५ । संक्षेप शारीरक में ३/१२१ श्री रामतीर्थ कृत व्याख्या में शान्दिकृत म्हनन्दि विरचित वाक्यानां सूत्र रूपाणाम्। सं० शा० ३/२१७ तथा ३/२२० श्री म० सू० स० कृतसार - संग्रहटीकायाम् 210
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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