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________________ मौखिक या लौकिक प्रचार से अवश्य जुड़े रहे होंगे। निश्चित है आचार्य गुहदेव निर्विशेष ब्रह्मवादी नहीं था क्योंकि बाद में आचार्य शङ्कर ने ब्रह्मवाद को अधिक स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया। श्रीनिवास दास 'यतीन्द्र दीपिका' में जो आचार्यों की सूची दी गयी है वह काल कम से दी गयी है इस क्रम से अचार्य गुहदेव भारुचि के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं। अचार्य रामानुज गुहदेव और कपर्दी की गणना शिष्ट जनो में की है। इसलिए ये दोनो विद्वान विशिष्टाद्वैतवादी रहे हैं। आचार्य भारुचि आचार्य भारुचि वैष्णव सम्प्रदाय के थे। रामानुज ने “वेदार्थ संग्रह" में अपने पूर्ववर्ती कुछ आचार्यों के नाम उल्लिखित किया है। “भगवद्बोधायनटंङ्कद्रविडगुहदेवकपर्दिभारुचिप्रभृत्यविगीतशिष्टपरिगृहीत।" विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरा (१/१८, २/१२४) और माधवाचार्य ने पाराशर संहिता की टीका में भारुचि को धर्मशास्त्र का लेखक बतलाया है। 'सरस्वती विलास' नामक ग्रन्थ में भारुचि को धर्मशास्त्रकार के रूप में बताया गया है। आचार्य भारुचि 'विष्णुधर्म सूत्र' पर एक व्याख्या ग्रन्थ लिखे थे। यह पाञ्चरात्र सम्प्रदाय के अनुयायी थे जो वैष्णव का उपजीव्य ग्रन्थ है इसीलिये रामानुज ने पूर्ववर्ती आचार्यों में मुख्य स्थान दिया। भारुचि का समय ६वीं शती के प्रथमार्द्ध तक का माना जाता है। आचार्य भर्तृहरि 'वेदार्थ संग्रह, पृ० १६६राधवाचार्य सम्पादित, आचार्य पीठ, बरेली से सं० २०१८ में प्रकाशित संस्करण। * सरस्वती विलास- पृ० २०, ५१ मैसूर संस्करण। 'P.V.Kane. History of Dharma Sastra, Vol. I.P.265 202
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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