SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री शङ्कराचार्य से पूर्व अद्वैतवादी आचार्य भर्तृहरि अधिक प्रसिद्ध थे। इनका स्थितिकाल किसी ने ४००-४५० ई० तथा कुछ ५६१-६५१ ई० तक का, काश्मीर का मानते है। जनरव या जनश्रुति है कि भर्तृहरि राजा थे। कुछ विद्वान विक्रमादित्य का बड़ा भाई भर्तृहरि को मानते है। भर्तृहरि के विक्रमादित्य के बड़े भाई होने में तो कोई ऐतिहासिक प्रमाण नही है। तब वे राजा थे, इसका प्रमाण लोकगाथा और लोकगीतो में स्पष्ट सुनाई पड़ता है। इसके बारे में एक प्राचीन श्लोक भी साक्ष्य दे रहा है या चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता सा चान्यमिच्छति जनं सा जनोऽन्यसक्तः । अस्मत् कृते च परिशुष्यति काचिदन्याधिक तां च तं च मदनं च इमां च मां च ।। इस प्रकार पश्चाताप करते-करते उनके विवेक, वैराग्य और शास्त्रज्ञान सब उबुद्ध हो गये फिर तो 'चिन्ता यशसि न वपुसि व्यसनं शास्त्रे न युवति कामास्त्रे। भक्तिभवे न विभवे प्रायः परिदृश्यते महताम' || इस श्लोक के उदाहरण बन गये। चीनी यात्री इत्सिंग ने इन्हें बौद्ध माना है। परन्तु भारतीय विद्वान इन्हें शुद्ध सनातनी, महान शिवभक्त तथा अद्वैतवेदान्त के आचार्य मानते है। आध्यात्म की परम्परा के आचार्यो में भर्तृहरि का नाम प्रसिद्ध है। यामुनाचार्य ने अपनी 'सिद्वित्रय' (पृष्ठ ५) नामक रचना में इसके नाम का उल्लेख किया है। प्राचीन आचार्यों ने अपने ग्रन्थ में आदर के साथ सिद्धान्तों को ग्रहण किया है यथा- श्री पार्थ मिश्र की 'शास्त्रदीपिका' में सोमानन्द विरचित शिवदृष्ट में, उमामाहेश्वर कृत तत्वदीपिका में, विमुक्तात्मकृत 'इष्टसिद्ध में जयन्त भट्ट कृत 'न्याय मञ्जरी' में तथा '"तथा च हरिनिरुक्तम् प्रधानस्य मरणेनार्थिन इज्यां प्रर्वतन्ति' इति। शास्त्रदीपिकायाम्-अ० १० पा०२ सू०५७-५८ 2 सोमानन्दः ८८० ई० वैयाकरणानां शब्दाद्वैतमधिक्षिपन् वाक्यपदीयस्य कारिकाद्वय मुरिति- अनादिनिधनं ब्रम्ह० वा० प० १/१ तथान सोस्टि प्रत्ययो लोके (वा० प०१/१२३) इघ्टसिद्धौ शब्दाद्वैत खण्डने श्री काम भर्तृहरेरयं श्लोक उद्धृत- अनादिनिधनं ब्रम्हा....... इत्यादि वा०प०१/१ + न्याय मंजरी मे-वारुपता चेदुत्कामेदवबोधस्य शाश्वती। न प्रकाशः प्रकाशेत सा हि प्रत्यवमर्शिनी।। वा०प० १/१२५५ नाशोत्पाद समालीढं ब्रम्ह शब्दमयंपरम ।। त० सं० श० ब्रे० प० १२८ श्लोक 203
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy