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________________ १-शास् = आज्ञा करना तथा २-शंस = प्रकट करना या वर्णन करना शासन करने वाले शास्त्र विधि रूप तथा निषेध रूप होने से दो प्रकार के होते है श्रुति तथा स्मृति प्रतिपादित कार्य अनुष्ठान करने योग्य है (विधि) तथा निन्दित कर्मकलाप सर्वथा हेय हैं (निषेध)। अतः शासन अर्थ में शास्त्र शब्द का प्रयोग धर्मशास्त्र के लिये उपर्युक्त प्रतीत होता है। शंसक शास्त्र अर्थावबोधक शास्त्र वह है जिसके द्वारा वस्तु के सच्चे स्वरूप का वर्णन किया जाय। शासन शास्त्र क्रिया परक होता है। पर शंसक शास्त्र ज्ञान परक होता है शंसक शास्त्र के अर्थ में ही शास्त्र का प्रयोग दर्शन शब्द के साथ होता है। धर्मशास्त्र कर्तव्याकर्तव्य का प्रधानतया विधान करने में 'पुरुष परतंत्र' है। दर्शन-शास्त्र वस्तु के स्वरूप का प्रतिपादक होने से वस्तुतंत्र है। इस प्रकार दूसरे शब्दों में दर्शन शब्द का अर्थ ही है “साक्षात् देखना अर्थात् परमतत्त्व का साक्षात्कार या अपरोक्षानुभव"। दर्शन शब्द के अर्न्तगत ही साक्षात्कार के साधनों का जैसे श्रुति और तर्क का भी समावेश हो गया है। "दर्शन साक्षात्करणम् अपि च दृश्यते अनेन इति दर्शनम्" ज्ञान प्राप्त करने के भिन्न-भिन्न साधन हो सकते हैं, किन्तु सबसे निश्चित और विश्वसनीय उपाय है “प्रत्यक्ष", प्रत्यक्ष दो शब्दों से बना है प्रति+अक्ष अर्थात् आँख से देखना। इन्द्रियों के भेद से प्रत्यक्ष के भी पांच भेद है जिनमें चक्षुरूप इन्द्रिय के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त होता है वही ज्ञान सबसे ज्यादा बढकर प्रामाणिक माना जाता है। इसलिये जहां ज्ञान की प्रामाणिकता और दृढता के सम्बन्ध पर विशेष बल देना होता है, वहां दर्शन शब्द का ही प्रयोग सर्वथा उचित है, और जिसके द्वारा देखा जाय अर्थात् जो आंख से देखा जाय यही उसका साक्षात् अर्थ करना उचित है। देखना क्रिया चक्षु के द्वारा ही संभव है अन्य इन्द्रियों से नहीं। कुछ विद्वानों के विचार में प्राकृतिक, बौद्धिक या आध्यात्मिक जगत के बहुत से तत्त्व अत्यन्त सूक्ष्म हैं जिनको चक्षु के द्वारा देखा जाना संभव नहीं होता है। इसलिए दर्शन शब्द का ज्ञान प्राप्त किया जाना यही अर्थ करना उचित है। प्रतिपक्षी का यह विचार भी कुछ अंश में
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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