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________________ दर्शन शब्द की व्युत्पत्ति दृश् 'धातु' 'ल्युट्' प्रत्यय से निष्पन्न है। (दृश्+ल्युट् अन्) जिसका अर्थ है 'देखना' 'दृश्यते इति दर्शनम्'। इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो देखा या जाना जाय वह दर्शन है। अब प्रश्न उठता है कि हम कौन हैं, कहाँ से आये हैं। इस सर्वतो दृश्यामान् जगत् का वास्तविक स्वरूप क्या है? इसकी उत्पत्ति किस प्रकार से हुई? इसकी सृष्टि का कौन कारण है? यह सप्रयोजन है या निष्प्रयोजन, यह चेतन है या अचेतन? ईश्वर क्या है? ईश्वर का स्वरूप क्या है? तथा ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करने में प्रमाण क्या है? जीवन का परम उद्देश्य क्या है? सत्ता का स्वरूप क्या है? ज्ञान का साधन क्या है? ज्ञान की प्रामाणिकता और सीमा क्या है शुभ और अशुभ क्या है? इस लौकिक जगत में हमारे लिये कौन से कार्य कर्तव्य है? जीवन को सुचारु रूप से व्यतीत करने के लिये कौन सा सुन्दर साधन मार्ग है? आदि प्रश्नों का समुचित उत्तर देना दर्शन का प्रधान ध्येय है। इस प्रकार संक्षेप मे कह सकते हैं कि भारतीय दर्शन दो प्रमुख विषयों से सम्बन्धित है (१) आध्यात्म विद्या या मोक्ष शास्त्र से तथा (२) ज्ञानमीमांसा अथवा प्रमाण-शास्त्र से हैं। इस प्रकार दर्शन उपर्युक्त सभी प्रश्नों का तर्कतः युक्तिपूर्वक उत्तर देने का प्रयास है। जिसमे भावना या विश्वास प्रधान न होकर बुद्धि ही मुख्य होती है। दर्शन को शास्त्र संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। किन्तु मुख्य प्रश्न उठता है कि, शास्त्र क्या है? 'शास्त्र' शब्द की व्युत्पत्ति आगम ग्रन्थों में इस प्रकार बतलाई गई है। "शासनात् शंसनात् शास्त्रं शास्त्रमित्याभिधीयते । शासनं द्विविधं प्रोक्तं शास्त्रलक्षणवेदिभिः ।। शंसनं भूतवस्त्वेकविषयं न क्रियापरम् ।।" आचार्य बलदेव उपाध्याय के अनुसार-शास्त्र की व्युत्पत्ति दो धातुओं से हुई है
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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