SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्मरथ्य का इस विषय में विचार है कि अनन्त पर ब्रह्म का दर्शन एवं साक्षत्कार अल्पज्ञ एकदेशी जीवात्मा के लिये होना संभव नही केवल हृदय-प्रदेश स्थित परब्रह्म का साक्षात्कार आसक्त को हो पाता है इसी आधार पर अनन्त ब्रह्म को प्रादेशमात्र कह दिया गया है। उपासक आत्मा को परब्रह्म की अभिव्यक्ति आत्मा के निवास हृदयदेश (मस्तिष्क-गत) में संभव है। यह कारण भी ब्रह्म को प्रादेश-मात्र कहे जाने का हो सकता है आश्मरथ्य का मत है कि अनन्त-ब्रह्म की अभिव्यक्ति उपासक आत्मा को एक सीमित प्रदेश (हृदयदेशमात्र) में होती है। सम्पर्णतः उसकी उपलब्धि नहीं की जा सकती यही कारण ब्रह्म का प्रादेशमात्र कहे जाने का है। इस विचार को सूत्रकार ने अपेक्षणीय नहीं माना है। दूसरे सूत्र में "प्रातिज्ञासिद्धलिङगेमाश्मरथ्यम" (ब्र० सू० १।४।२०) में आश्मरथ्य का उल्लेख मिलता है। वहां एतरेय (१।१।२) तथा बृहदारण्यक (४।५।१-६) के सन्दर्भो में पठित 'आत्मा' पद की ब्रह्म वाचकता का विवेचन है। आश्मरथ्य के मतानुसार विज्ञानात्मा तथा परमात्मा में परस्पर भेदा-भेद सम्बन्ध है इसलिए इन्हें द्वैताद्वैतवादी भी कहते हैं। आश्मरथ्य' का भेदाभेदवाद परवर्तीकाल में यादवप्रकाश द्वारा परिपुष्ट हुआ था। __ श्री मुरलीधर पाण्डेय ने श्री शङ्करात प्रागद्वैतवाद ग्रन्थ में लिखा है कि "अयं भेदाभेदवादी अथवा द्वैताद्वैतवद्यासीत्। अयं कथयति यत् मुक्तेः पूर्व ब्रह्मजीवयोभेदो भवति। मुक्तेरनन्तरमुभयोरभेदो भवति। आत्मनि विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवति', इतिश्रुतिरपि उक्तेर्थ एव तात्पर्य बोधयति।" 1 डा० कविराज गोपीनाथ, 'अच्युत' पृ०५ (वेदान्तशांकर भाष्य के हिन्दी अनुवाद की भूमिका।) ३. श्री मुरलीधर पाण्डेय -श्री शंकरात प्रागद्वैतवाद पृ०-८५ 186
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy