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________________ जैन-दर्शन के अलावा बौद्ध दार्शनिक शान्तरक्षित ने तत्त्व-संग्रह में प्राचीन अद्वैत वेदान्त का वर्णन किया है। उनके टीकाकरणमलशील "अद्वैतदर्शनावलम्बिनश्च औपनिषदिकाः" कहकर अद्वैतवेदान्त का उल्लेख किया है। १. आत्रेय आर्ष वेदान्त की आचार्य परम्परा में प्रथम नाम आचार्य आत्रेय का आता है। ब्रह्मसूत्र में आत्रेय का नाम केवल एक स्थल पर उल्लिखित है- "स्वामिनः फलश्रुतेरित्यात्रेयः" (ब्रह्म सूत्र ३।४।४४) अर्थात आचार्य आत्रेय का मत है कि यजमान को ही यज्ञ की अङग भूत उपासना का फल प्राप्त होता है, ऋत्विक् को नहीं। इस प्रकार सारी उपासनाएं यजमान को करनी चाहिये न कि पुरोहित को।' श्रुति भी यजमान को फल का प्राप्त होना बताती है। महाभारत में (१३ ११३७ ।३) में आत्रेय का नाम यत्र-तत्र उल्लिखित मिलता है जिसने अपने शिष्यों को निर्गुण ब्रह्म का उपदेश दिया था। किन्तु यह निश्चित रूप से कहना कठिन है कि महाभारत के आत्रेय और ब्रह्मसूत्र के आत्रेय भिन्न हैंया अभिन्न। जैमिनि की पूर्व मीमांसा में (जै०सू० ४।३।१८, ६।१।२६) भी आत्रेय का नाम उल्लिखित है।' २. आश्मरथ्य वेदान्त दर्शन के दो सूत्रों में आश्मरथ्य का उल्लेख है- १. अभिव्यक्तरित्याश्मरथ्य (ब्र० सू० १।२।२६) अभिव्यक्ति के कारण यह आश्मरथ्य नाम का आचार्य कहता है कि "हृदय प्रदेश में वैश्वानर ब्रह्म अभिव्यक्त प्रकाशित होता है, इस कारण उसे "प्रादेश मात्र" कहा। यह आश्मरथ्य आचार्य का विचार है। । तस्मात् स्वमिन एव फलवत्सूपासनेषुकतृत्त्वमित्यात्रेयः (ब्र० सू० शा० भा० ३।४।४४) (क) फलमात्रेयो निर्देशादश्रुतौ द्वन्यनुमानं स्यात्। (जै० सू० ४।५।१८) (ख) निर्देशदात्रयाणां स्यादग्न्याधेशे सम्बन्धः वाह्यश्रुतेरित्यात्रेयः (जै० सू०६।१।२६) ३७० सू०। पृ० १८१
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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