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________________ दर्शन सामान्य परिचय मनुष्य स्वभावतः एक चिन्तनशील प्राणी है । दार्शनिक विधा से चिन्तन, मनन करना मानव मात्र की मूल प्रवृत्ति है । प्रायः हम देखते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना कोई जीवन मूल्य या दर्शन अवश्यमेव होता है । 'दर्शन' अपनें विभिन्न प्रकार के अनुभवों के स्पष्टीकरण का एक प्रयास है और जब यह स्पष्टीकरण दिक्कालातीत स्वरूप का हो जाता है; तब वह 'दर्शन' कहलाने योग्य हो जाता है । दर्शन शास्त्र के ज्ञान से मनुष्य के ज्ञान का परिष्कार होता है, विचारधारा में सुदृढ़ता आती है और व्यवहार में क्रांति का अवसर नहीं आने पाता है। इस तरह से भारतीय दर्शन जीवन का आधार बनने के साथ-साथ ज्ञान विज्ञान के विस्तार में यह एक अद्भुत सहायक की भूमिका का निर्वाह करता है । बुद्धिमान् प्राणी होने के कारण मनुष्य जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है अतएव सृष्टि की नानाविध विचित्र वस्तुओं को देखकर बौद्धिक मानव ज्ञात करने के लिए सदैव उत्सुक तथा प्रयत्नशील रहा है। विश्व के प्राचीनतम वाङ्मय ऋग्वेद के नासदीय सूक्त के प्रणयन काल से ही मनुष्य की प्रवृत्ति के उद्भूत होने के प्रमाण मिलते हैं। नासदीय सूक्त का द्रष्टा ऋषि कहता है " को अद्वा वेद क इह प्रवोचत् । कुत अजाता कुत इयं विसृष्टि:' श्वेताश्वतर उपनिषद् के १/१ में भी कुछ इसी प्रकार का वर्णन मिलता है जो जगत्कारण की मीमांसा से संबंधित मौलिक प्रश्नों की व्याख्या करता है किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता जीवाय केन क्व च संप्रतिष्ठाः । अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम् । । (श्वेता० ६ / ६) " वेदान्तसार - सदानन्द योगीन्द्र ।
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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