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________________ सकाम कर्म को नाना पोतियों में भ्रमण का कारण माना गया है। निष्काम कर्म करने से बन्धन नहीं होता है। गीता का उपदेश है कि मानव का अधिकार केवल कर्म करने में है उसके फल में नहीं। फल की आकांक्षा से कभ कर्म मत करो। तथा अकर्म में- कर्म के न करने में कभी तुम्हारी इच्छा न होनी चाहिये। कर्मण्येवाधिकरस्ते मा फलेषु कदाचन्। मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ।। (गीता २/४७) इस श्लोक को कर्मयोग का महामंत्र कहा जाता है। आचार्य बल्देव उपाध्याय ने लिखा है कि इस श्लोक के चारों पदों को हम कर्मयोग की 'चतुःसूत्री' कह सकते हैं।' गीता यह उपदेश नहीं देती है कि प्राणी को कर्म का त्याग करना चाहिये प्रत्युत् यह उपदेश देती है कि कर्म के फल का त्याग करना चाहिये। कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किये एक क्षण भी नहीं रह सकता है। यदि कोई ऐच्छिक कर्म नहीं करता है तो उससे स्वतः ही अनैच्छिक कर्म होते रहते हैं- इसलिये कर्मयोग अकर्मण्यता की शिक्षा नहीं देता है- काम्य कर्मों के त्याग को सन्यास कहते हैं काम्यानां कर्मणां न्यासं सन्यासं कवयो विदुः। सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ।। (गीता १८/२) ईश्वरीय कर्म ही अनासक्त कर्म है जिस मनुष्य में आसक्ति का अभाव है, वह पुरूष कर्म करता हुआ भी जल में कमल के पत्ते के समान पाप से लिप्त नहीं होता ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गा त्यक्तवा करोति यः। लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।। (गीता ५/१०) 167
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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