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________________ आचार्य शङ्कर भी अपने युग के प्रतिनिधि दार्शनिक हैं और उनके दार्शनिक विचारों की सूक्ष्मता दर्शनजगत को अत्यधिक प्रभावित करती है । दर्शन के क्षेत्र में आचार्य शङ्कर का योगदान किसी दार्शनिक से कम नहीं है। श्रीमद्भगवद्गीता I विश्व दर्शन के क्षेत्र में गीता का विशिष्ट स्थान है । यह दार्शनिक जगत को भारत की अद्भुत देन है । प्राचीन भारत के दर्शन का एक अत्यन्त लोकप्रिय काव्यात्मक प्रतिपादन भगवद्गीता में हुआ है जो महाभारत महाकाव्य का एक अंग है। यह महाभारत के भीष्म पर्व के अन्तर्गत है । कुरूक्षेत्र के युद्ध में अपने बन्धु बान्धवों की हत्या तथा युद्ध की भयानकता से त्रस्त पाण्डव वीर अर्जुन को श्रीकृष्ण ने कर्म के लिये जो प्रेरणा दी, वही भगवद्गीता में निरूपित है। भगवद्गीता महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित संस्कृत ग्रन्थ है। इसके अठारह अध्यायों में संदेह में निमग्न अर्जुन को कृष्ण ने लम्बा दार्शनिक उपदेश दिया है । एक क्षत्रिय के रूप में अपने शत्रुओं का संहार करना अर्जुन का कर्तव्य था, किन्तु ये शत्रु कोई और नहीं बल्कि उनके सगे सम्बन्धी थे। इसलिये अर्जुन उनकी हत्या करने में नैतिक रूप से विचलित हो उठे - इनमें तो "मेरे आचार्य, मामा और दादा, मेरे श्वसुर और शुभचिंतक हैं।' इस प्रकार गीता के प्रथम अध्याय में अर्जुन के शोक एवं मोह का वर्णन है और दूसरे अध्याय का विषय सांख्य- योग एवं निष्काम कर्मयोग है। तीसरे और चौथे अध्याय में क्रमशः कर्मयोग तथा ज्ञान - कर्म - - सन्यास योग का वर्णन है। छठे अध्याय में आत्मसंयम का वर्णन है और सातवें में ज्ञान - विज्ञान योग का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार बाकी के अध्यायों में भी विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया गया अन्तिम अठारहवें अध्याय में मोक्ष - सन्यास योग का वर्णन है। स्वामी विवेकानन्द ने श्रीभगवद्गीता - १,२६-२७ । 156
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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