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________________ अव्यक्तावस्था में थी। ईश्वर अपनी ईक्षणशक्ति से ही उसमें गति उत्पन्न कर क्षोभ पैदा कर देता है। वेदों में सृष्टिरचना का वर्णन बहुत ही दार्शनिक विधि से किया गया है'द्वा सुपर्णा सुयुजा सखाया" यह मंत्र ऋग्वेद में भी आता है और यह मंत्र उपनिषदों में भी प्राप्त होता है इस मंत्र में प्रकृति की उपमा वृक्ष से दी गयी है। उपनिषदों की दार्शनिक व्याख्या वही समुचित हो सकती है जो वेदों की व्याख्या से भी सहमति रखती हो इस प्रकार से वेदों में स्पष्ट रूप से यथार्थवाद का निरूपण किया गया है। निष्कर्ष (समालाचना) वेद ईश्वर से उद्भूत है अतेव यह अपौरूषेय कृति है तथा अलौकिक है। इस मत को आचार्य शङ्कर, रामानुज, दयानन्द तीनों ही मानते हैं। दयानन्द ने वेदों का भाष्य यथार्थवादी युग में किया है जकि आचार्य शङ्कर ने अपने दर्शन का प्रारम्भ बौद्ध दर्शन के खण्डन से प्रारम्भ किया है क्योंकि उस समय वैदिक मान्यताएं ब्रह्म का महत्व समाप्त हो रहा था इस दिशा में बौद्ध दार्शनिक प्रयत्न कर रहे थे इसलिय सभवतः आचार्य शंकर ने इस प्रतिक्रिया में ब्रह्म को ही सब कुछ कहा- 'सर्वखल्विदंब्रह्म', नेहनानास्ति किञ्चन जगत। और प्रकृति का खण्डन किया जो उस समय उस युग की जरूरत थी। स्वामीदयानन्द का प्रादुर्भाव यथार्थवादी प्रादुर्भाव के साथ ही हुआ है। दयानन्द ने वेद के भाष्य के द्वारा भारतीय संस्कृति को विश्व के सम्मुख चमत्कृति रूप में रखा है। स्वामी दयानन्द के प्रभाव से ही सकल भारतीय वाङमय जो परस्पर विरोधी सा प्रतीत होता था आज उसमें समन्वय दृष्टिगोचर होता है। 1 ऋग्वेद (१/१६४/२) 155
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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