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________________ वाक्यों को प्रमाण रूप में मानते हैं"।' भगवान बादरायण का ब्रह्मसूत्र उपनिषदों के दर्शन का सार प्रस्तुत करता है। सांख्य दर्शन की प्रकृति का उल्लेख श्वेताश्वेतर उपनिषद में "अजाम एकाम लोहित शुक्ल कृष्णाम" मंत्र में आता है जहां स्पष्ट रूप से प्रकृति को सत्व, रज, तम तीनों गुणों से युक्त कहा गया है। योग दर्शन में 'प्रणव' का वर्णन माण्डूक्य उपनिषद् के 'प्रणव' उपासना का मूल ही है। कठोपनिषद का योग विवेचन पतंजलि के योग सूत्र का मूलस्रोत है। न्यायवैशेषिक दर्शन का ज्ञान सिद्धान्त उपनिषदों की श्रवण प्रक्रिया और मनन प्रक्रिया का विकास है। वैशेषिक परमाणुवाद का बीज भी उपनिषदों में प्राप्त होता है। इस प्रकार सभी भारतीय दर्शन उपनिषद् दर्शन से विकसित हुआ है और जो नहीं निकला है वह दर्शन ही नहीं है। उपनिषद के दार्शनिकों ने कई विधियों से दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत किया है उसमें कुछ विधि अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो निम्न है- यथा प्रतीकात्मक विधि- शाण्डिल्य ने छान्दोग्य उपनिषद का प्रतीकात्मक विधि से दार्शनिक विवेचन करते हुये परमतत्व के लिये 'तज्जलान' शब्द प्रयुक्त किया है। इसका तात्पर्य है कि जिससे यह जगत उत्पन्न होता है, जिसमें यह गतिशील है, और जिसमें इस जगत कालय होता है वह ब्रह्म है। ___माण्डूक्योपनिषद् में सूत्र विधि से 'ओम' का दार्शनिक विवेचन किया गया हैअ+उ+म द्वारा ओम की व्याख्या करते हुये 'ओम' को चतुष्पाद आत्मा कहा गया है। उपनिषदों में आख्यायिका विधि के झरा भी दार्शनिक विवेचन किया गया है यथाछान्दोग्य उपनिषद् में- इन्द्र और विरोचन की आख्यायिका वर्णित है। 1 एन. के. देवराज- भारतीय दर्शन- पृ०६६ ' तज्जलानिति शान्त उपासीत (छा० उप०३/१४/१) 141
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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