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________________ उपनिषदों के दार्शनिक विवेचन की निरूक्त विधि भी महत्वपूर्ण है। उपनिषदों में स्वप्न, पुरूष आदि शब्दों की निरुक्तियां दी गयी है- यथा जो सत् से सम्पन्न है या स्वयं को प्राप्त करता है वही स्वप्न है। छान्दोग्य उपनिषद में आरूणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को उपमान विधि से "तत् त्वम असि" का उपदेश दिया है। बृहदारण्यक उपनिषद में शास्त्रार्थ विधि से दार्शनिक विवेचन प्राप्त होता है। उपनिषद् दार्शनिक याज्ञवल्क्य ने अनेक दार्शनिकों से शास्त्रार्थ करके अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित की। यथा- कठोपनिषद में यम-नचिकेता संवाद, बृहदा० में याज्ञवल्क्य- मैत्रेयी संवाद छान्दो० उपनि० में आरूणि श्वेतकेतु संवाद और नारद सनत्कुमार संवाद मुख्य है। तैत्तरीय उपनिषद् में "अरुन्धती न्याय विधि” से दार्शनिक विवेचन किया गया है। इस उपनिषद् में ब्रह्म को क्रमशः अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय बताया गया है। इस प्रकार से उपनिषदों में आत्मसंलाप विधि संश्लेषणात्मक विधि, विश्लेषणात्मक विधि, अधिदैवत आदि विधियों से दार्शनिक विवेचन प्राप्त होता है। उपनिषदों में दार्शनिक विवेचन वेदों के बाद आरण्यक ग्रन्थों में जो आध्यात्मिक जिज्ञासा की प्रक्रिया विकसित हुई थी उसी का सुव्यवस्थित एवं परिपक्व रूप उपनिषदों में दृष्टिगोचर होता है। उपनिषद् अनेक विरोधी गुणों का समन्वय प्रस्तुत करता है। इसमें एक ओर यदि ज्ञानमार्ग का वर्णन है तो दूसरी ओर कर्ममार्ग और भक्तिमार्ग का है। एक ओर यदि "सर्व खल्विदं ब्रह्म" वर्णित है तो दूसरी ओर द्वैत और त्रैत सिद्धान्तों का वर्णन है। इस प्रकार उपनिषदों में विरोधों के साथ समन्वय परिलक्षित होता है। उपनिषदों में दार्शनिक विचारों का अतीव सुन्दर चित्रण किया गया है। 142
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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