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________________ विषय संहिता और आरण्यक है- ज्ञान के विषय का प्रतिपादन करने वाले उपनिषदें हैं यह ज्ञान ब्रह्मज्ञान है या आत्मज्ञान है यही मोक्ष का साधन है। उपनिषदों में अद्वैत श्रुति, विशिष्टाद्वैत श्रुति तथा द्वैत श्रुतियों का सद्भाव है इसे कोई भी विद्वान अस्वीकार नहीं कर सकता है। श्री शङकराचार्य ने उपनिषदों पर भाष्य लिखकर उनमें अद्वैत का ही प्रतिपादन किया है। श्री रामानुजाचार्य ने स्वयं उपनिषदों पर भाष्य नहीं लिखा हैं माधवाचार्य के प्रतिपादन का मुख्य तात्पर्य ब्रह्म तथा आत्मा की भिन्नता (द्वैत) के प्रतिपादन में है। उपनिषद् सभी भारतीय दर्शनों के मूल स्रोत हैं जो भारतीय दर्शन वेद प्रामाण्य को मानते हैं वे सभी उपनिषदों को वेद प्रामाण्य को मानते हैं वे सभी उपनिषदों को वेद प्रामाण्य नहीं मानते हैं। फिर भी उनके दर्शन के मूल उपनिषदों में हैं। कुमारिल भट्ट ने बौद्धदर्शन के विज्ञानवाद, क्षणभङगवाद, अनात्मवाद तथा वैराग्यवाद को उपनिषदों से निकला हुआ स्वीकार किया है। चार्वाक दर्शन का भौतिकवाद उपनिषद् के दार्शनिक विरोचन का दर्शन है। जैनदर्शन का सदृष्टि, असदृष्टि, अवाच्य दृष्टि उपनिषदों में मिलती है। जिसे लेकर जैनियों ने स्यादवाद और अनेकान्तवाद का सिद्धान्त विकसित किया। एन. के. देवराज ने अपनी पुस्तक भारतीय दर्शन में लिखा है- "षड्दर्शनों में वेदान्त के सभी सम्प्रदाय उपनिषदों के साक्षात विकास है। 'ततत्वमसि' इस एक वाक्य की व्याख्या विभिन्न वेदान्त सम्प्रदायों ने विभिन्न प्रकार से की है। इस और ऐसे अन्य वाक्यों के व्याख्यानों से इन सम्प्रदायों का प्रार्दुभाव हुआ है। ये सभी सम्प्रदाय ब्रह्मवादी हैं और जीव, जगत तथा ब्रह्म का विवेचन करते हैं। इस विवेचन में ये उपनिषद् के 140
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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