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________________ सामान्य गुणों के आधर पर - 'एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वामाहुः (ऋ० १/१६४/४६) में एक ईश्वर की सत्ता काप्रतिपादन है । ' ‘बलदेव उपाध्याय' ने अपनी पुस्तक 'भारतीय दर्शन' में लिखा है 'जो कुछ समय वर्तमान है, जो कुछ उत्पन्न हुआ है (भूतकाल में) तथा जो कुछ उत्पन्न होने वाला है (भविष्यकाल में) वह सब पुरूष ही हैं- " पुरुष एवेदं सर्व यद् भूतं यच्च भाव्यम्।” वेद में सर्वेश्वरवाद के सिद्धान्त का भी वर्णन है- अदिति सूक्त में वर्णित है कि- अदिति ही आकाश है, अदिति ही अन्तरिक्ष है, अदिति ही माता है, अदिति पिता है, तथा पुत्र है तथा अदिति समस्त देवता है, अदिति पञ्चजन (निषाद सहित चतुर्वर्ण) जो कुछ उत्पन्न है तथा जो कुछ उत्पन्न होने वाला हे वह सब अदिति ही है । ' उच्छिष्ट सूक्त में 'उच्छिष्ट' से तात्पर्य - बचा हुआ, शेष पदार्थ । दृश्यप्रपञ्च के निषेध करने के अनन्तर जो अवशिष्ट रहता है वही 'उच्छिष्ट' है अर्थात बाधारहित परब्रह्म । ब्रह्म के इसी स्वरूप की अभिव्यक्ति के उपनिषद में की अभिव्यक्ति के लिये बृहदारण्यक उपनिषद् ब्रह्म को 'नेति नेति' पुकारता है। यथा- 'अथ आदेशोनेति नेति'(बृहदाण्यक उपनिषद २/३/११) नेहनानास्ति किञ्चन - वही, (४/२/२१) इस नामरूपात्मक जगत के सभी नानाविध पदार्थ उच्छिष्ट पर अवलम्बित है । इस प्रकार उपनिषदों में ब्रह्मतत्व तथा ब्रह्मात्मैक्यवाद का मुख्येरूप से वर्णन हुआ है । इस विवेचन को पढ़कर गीता के - " वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यः" तथा "आदावर्न्त च मध्ये च हरिः सर्वत्रगीयते" पुराण के इस वाक्य में किञ्चित सन्देह नहीं रह जाता है । पुरूष सूक्त (ऋ० १०/६०) में विराट पुरूष से सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन है। ऋग्वेद का नासदीय सूक्त (१०/१२९) में भी सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन है। यह सूक्त आध्यात्मिक दृष्टि से अद्वैत भावना को ही पुष्ट करता है। इस सूक्त के ऋषि के सामने डा० कपिलदेव द्विवेदी- संस्कृत सा० का समीक्षा० इतिहास - पृ० ४८ 131
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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