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________________ प्रो० एच०पी० सिन्हा ने "भारतीय दर्शन की रूपरेखा" नामक अपनी पुस्तक में लिखा है- "जगत के अतिरिक्त वे विभिन्न देवताओं के बारे में जिन्हें वे पूजते हैं, शंका करना आरम्भ करते हैं इन प्रवृत्तियों के फलस्वरूप दार्शनिक विचार का प्रारम्भ होता है, जिसका पूर्ण विकास उपनिषदों के दर्शन में दीखता है।" डा० राधाकृष्णन ने ऋग्वेद के सूक्तों को दार्शनिक प्रवृत्ति का परिचायक कहाहै, उन्होंने कहा है- "ऋग्वेद के सूक्त इस अर्थ में दार्शनिक हैं कि वे संसार के रहस्य की व्याख्या किसी अतिमानवीय अन्तर्दृष्टि अथवा असाधारण दैवी प्रेरणा द्वारा नहीं किन्तु स्वतंत्र तर्क द्वारा करने का प्रयत्न करते हैं।" ब्रह्म के सर्वव्यापी होने की महत्वपूर्ण कल्पना का वर्णन अनेक सूक्तों में मिलता है इसका उल्लेख पुरूष सूक्त (१०/६०) में तथा अदितिसूक्त (१/८६) में मिलता है। वह हजार मस्तक हजार आँखों तथा हजार पैर वाला 'पुरूष' चारों ओर से इस पृथ्वी को घेर कर परिणाम में दस अंगुल अधिक है। डा० कपिलदेव द्विवेदी ने अपनी पुस्तक संस्कृत सा० का समीक्षा इतिहास में लिखा है कि- "ऋग्वेद में दार्शनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलता है इसमें देवों का स्वरूप, ब्रह्म, ईश्वर, जीव, प्रकृति, सृष्टि की उत्पत्ति, पाप-पुण्य, लोक-परलोक, मोक्ष-पुनर्जन्म आदि का वर्णन है। प्राकृतिक तत्व सूर्य, चन्द्र, वायु, मेघ विद्युत आदि का इन्द्र, वरूण, रूद्र, मरूत् आदि नामों से वर्णन किया गया है। कुछ अमूर्त भावों को भी देवता का रूप दिया गया है जैसे काम, श्रद्धा, मन्यु आदि। ईश्वर को एक सर्वोच्च सत्ता माना गया है और इन्द्र, मित्र, वरूण आदि उसी के विविध नाम बताए गये हैं। प्रत्येक देव के कुछ सामान्य गुण एवं विशेषण हैं तथा उनके कुछ विभेदक गुण भी हैं। 130
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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