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________________ इस विश्व की उत्पत्ति की विषम पहेली विद्यमान थी। यह विश्व कहां से उत्पन्न हुआ है? इसके मूल में कौन सा तत्व विद्यमान था? किस वस्तु की उत्पत्ति सर्वप्रथम हुई? आदि प्रश्नों का समुचित उत्तर देना सरल काम नहीं है परन्तु इस सूक्त में इन्हीं प्रश्नों का उचित उत्तर अन्तर्दृष्टि की सहायता से प्रस्तुत किया गया है। हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋग्वेद १०/१२१) में हिरण्यगर्भ प्रजापति से सृष्टि रचना का वर्णन है। ऋग्वेद में जल से भी जगत् की उत्पत्ति वर्णित है तथा ऋग्वेद (१०-७२, २-३) में असत् से सत् की उत्पत्ति भी बताई गयी है (देवानां पूर्ये युगेऽसतः सदजायत, मंत्र २)। ___ सृष्टि के आदिकाल में न तो असत् ही था और न तो सत् ही था वहां न तो आकाश था, न तो स्वर्ग ही विद्यमान था जो उससे परे है। किसने ढका था? यह कहां था? और किसकी रक्षा में था? क्या उस समय गहन तथा गंभीर जल था, उस समय न मृत्यु थी और न तो अमरत्व ही था उस समय दिन तथा रात का पार्थक्य न था। इतने निषेधों के वर्णन के अनन्तर ऋषि सत्तात्मक वस्तु का वर्णन कर रहा है कि बस एक ही था, जो वायुरहित होकर भी अपने सामर्थ्य से श्वांस ले रहा था। इससे अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु थी ही नहीं। इस प्रकार नासदीय सूक्त प्रेरित एकत्व की भावना के लिये और अपने दार्शनिक विचार के कारण विद्वानों में सर्वाधिक प्रशंसित हुआ है "नासदासीन्नौ सदासीत् तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परोयत् । किमा वरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भ; किमासीद् गहनं गभीरम् ।। न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्याअह आसीतप्रकेटः। आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्माद्धान्यन्न परः किञ्चनास ।।" (ऋ० संहिता १०/१२६) 132
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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