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________________ उल्लेख किया है। कृष्ण यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं जिनकी दो संहिताएं उपलब्ध होती हैं- १. माध्यान्दिन या वाजसनेयि संहिता- इसमें ४० अध्याय हैं और १६७५ मंत्र हैं। काण्व संहिता- इसमें ४० अध्याय हैं और मंत्र २०८६ हैं। कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं जिनकी चार संहिताएं उपलब्ध होती हैं १-तैत्तरीय, २-मैत्रायिणी, ३-काठक, ४- कपिष्ठकन्कठ संहिता। सामवेद- 'सामन्' का वास्तविक अर्थ 'गान' है ऋग्वेद के मंत्र जब विशिष्ट गान पद्धति से गाये जाते हैं तो उनको सामन् (साम) कहते हैं। अतएव पूर्वमीमांसा में गीति या गान को साम कहा गया है- 'गीतिषुसमाख्या (पूर्व० २/१/३६) महर्षि पतञ्जलि ने महाभाष्य में 'सहसूवा सामवेदः (आहिक १) कहा है। इससे तात्पर्य है कि समावेद की एक सहस्र शाखाएं थीं किन्तु यह मत सर्वथा समीचीन नहीं है। समावेद की मुख्य रूप से तीन शाखाएं १-कौथुमीय, २-जैमिनीय या तवल्कार, ३-राणयनीय । सामवेद की मंत्रसंख्या १८७५ हैं इसमें ऋग्वेद की मंत्र संख्या १७७१ है इस प्रकार सामवेद में १०४ मंत्र केवल नये हैं। सामवेद का मुख्यरूप से प्रतिपाद्य विषय उपासना है। इसमें मुख्यरूप से सोमयाग से सम्बद्ध मंत्रों का संकलन है। पूर्वार्चिक में अग्नि, इन्द्र ओर पवमान सोम से सम्बद्ध मंत्र दिये गये हैं। इन मंत्रों में सामगान की दृष्टि से प्रत्येक मंत्र की लय स्मरण करनी होती है, जिनका प्रयोग उत्तरार्चिक में होता है। यज्ञों के समय इन मंत्रों का उद्गाता गान करता है। ४- अथर्ववेद- निरूक्त और गोपथ ब्राह्मण में 'अर्थवन्' शब्द के दो निर्वचन दिए हैं ' अथर्वन– गतिहीन या स्थिरता से युक्त योग। निरूक्त के अनुसार 'थर्व' धातु गत्यर्थक है अतः अथर्वन्– गतिहीन या स्थिर। इसका अभिप्राय है जिसमें चित्तवृतियाँ के निरोधरूपी योग का उपदेश है। गोपथ ब्राह्मण में 'अथर्वा' शब्द अथार्वाक का संक्षिप्त 'अथर्वाणोऽथर्वणवन्त. थर्वतिश्चरतिकर्मा, तत्प्रतिषेधः (निरूक्त ११-१८)। 128
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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