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________________ का उल्लेख किया है- 'एक विंशतिधा बाहन्व॒च्यम' (महा० आह्निक-१) इनमें से पांच शाखाओं का नाम या साहित्य उपलब्ध होता है- १-शाकल, २-वाण्कल, ३-आश्वलायन, ४-शांखायन, ५-माण्डूकायन। शाकल शाखा ही ऋगवेद की सम्प्रति प्रचलित शाखा है तथा वाण्कल की संहिता अप्राप्त है। ___ ऋग्वेदीय देवता के सम्बन्ध में शासक ने निरूक्त (अध्याय ७–१२) दैवत काण्ड में वैदिक देवताओं पर पर्याप्त विवेचन प्रस्तुत किया है। यास्क ने ऋग्वेदीय देवों को तीन भागों में विभक्त किया है- १-पृथ्वीस्थानीय-इसके अन्तर्गत अग्नि को। २-अन्तरिक्ष स्थानीय- इसके अन्तर्गत इन्द्र या वायु, ३-धुस्थानीय- इसके अन्तर्गत सूर्य का वर्णन किया गया है; इसके अतिरिक्त अन्य सभी देव इनके सहयोगी हैं या इनसे सम्बद्ध हैं। "त्रिस एवं देवता इति नैरूक्ताः'। अग्निपृथिवीस्थानः। वायुर्वेन्द्रो वान्तारिक्षस्थानः । सूर्यो द्युस्थानः। (निरूक्त ७-५) यजुर्वेद- यजुर्वेद के 'यजुस' शब्द की कई व्याख्याएं हैं जो मुख्य अर्थ है१-यजुर्यजतेः अर्थात् यज्ञसम्बन्धी मंत्रों को यजुस् कहते हैं। २- इज्यते अनेन इति यजु:- जिन मंत्रों से यज्ञ-यागादि किये जाते हैं। __ 'अनियताक्षरावसानों यजुः- जिन मंत्रों में पद्यों के तुल्यअक्षर संख्या निर्धारित नहीं है। ४-- शेषे यजुः शब्दः (पूर्वमी० २/१/३७) पद्यबन्ध और गीति से रहित मंत्रात्मक रचना को "यजुष्" कहते हैं। यजुर्वेद के दो मुख्य भाग हैं- १. शुक्ल यजुर्वेद, २. कृष्ण यजुर्वेद । शुक्ल यजुर्वेद को ही माध्यान्दिन एवं वाजसनोराि भी कहते हैं। शुक्ल से तात्पर्य है कि इसके मंत्र विशुद्धरूप हैं और कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ ही व्याख्या और विनियोग का अंश भी मिश्रित है अतेव इसे 'कृष्ण यजुर्वेद' कहते हैं। महर्षि पतञ्जलि ने ‘एकशतमध्वर्युशाखाः' (महाआह्निक १) अर्थात् यजुर्वेद की १०० शाखाओं का 127
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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