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________________ बादरायण ही वेदव्यास थे जिन्होंने उपनिषदों के बिखरे विचारों को एक सामञ्जस्यपूर्ण और एकीकृत आदर्शवादी प्रणाली का विकास किया। बौद्ध और जैन ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि एक दर्शन के रूप में वेदान्त ईसापूर्व सातवीं और छठी शताब्दी में वर्तमान था। इस दर्शन के अनुसार चेतना अथवा आत्मा ही हर वस्तु का मूल कारण थी और हर वस्तु अन्त में उसमें ही विलीन हो जाती थी। इस दार्शनिक विचार-धारा का एक ओर भौतिक वादियों ने प्रबल विरोध किया तो दूसरी ओर बौद्ध और जैन मतावलम्बियों ने भी विरोध किया। किन्तु कालान्तर में कई शताब्दियां बीत जाने पर आदर्शवादी विचार की 'ब्रह्मसूत्र अथवा वेदान्तसूत्र' के रूप में स्थापना की गयी होगी। इस दर्शन का मुख्य प्रतिपाद्य ग्रन्थ 'बादरायणकृत ब्रह्मसूत्र' है। 'ब्रह्म-सूत्र' में कुल ५५४ सूत्र हैं। भगवान बादरायण ने इन सूत्रों को विषय की दृष्टि से चार अध्यायों में विभक्त किया है। चार अध्यायों के नाम हैं क्रमशः समन्वयाध्याय, अविरोधाध्याय, साधनाध्याय, फलाध्याय। इसके बाद प्रत्येक अध्याय को चार चार पादों में विभक्त किया है। फिर इन ‘पाद' को 'अधिकरण' के रुप में विभाजित किया गया है। अनेक सूत्रों को मिलाकर 'अधिकरण' की रचना की गयी है। प्रत्येक अधिकरण के भीतर पाँच अवयव होते हैं जो क्रमशः विषय, विशय, पूर्वपक्ष, उत्तरपक्ष और फल हैं। तर्क की दृष्टि से ब्रह्मसूत्र का द्वितीय अध्याय 'तर्कपाद अधिक महत्वपूर्ण है। 'ब्रह्मसूत्र' के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि बादरायण से भी पूर्व वेदान्त के आचार्य हुये थे परन्तु इन आचार्यों की कृतियां उपलब्ध नहीं हैं। ये आचार्य हैं- आत्रेय, आश्मरथ्य, औडुलोमि, कार्णाजिनि, काशकृत्स्न, जैमिनी, बादरि, एवं आचार्य काश्यप प्रमुख हैं। इन आचार्यों का ब्रह्म-सूत्र में कहीं कहीं नामोल्लेख सूत्रों में किया गया है। शङ्कर पूर्व सभी अद्वैत के आचार्यों में 'गौणपाद' का स्थान विशेष है। इनका प्रमुख ग्रन्थ 'गौणपाद कारिका' है। ये शङ्कराचार्य के गुरु गोविन्दपादाचार्य के गुरु थे। 116
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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