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________________ जैन मत के समान कुमारिल भी आत्मा को नित्यानित्य, भेदाभेद रूप चिदचिद्रुप और द्रव्य एवं गुण-कर्म-रूप मानते हैं। मीमांसा-दर्शन में जगत की सत्ता अनादि और अनन्त है, इसका आत्यन्तिक प्रलय कभी नहीं होता है। प्रवाह रूप से अनादि होने के नाते इसकी प्रथम उत्पत्ति भी नहीं है। अतएव जगतकर्ता के रूप में ईश्वर का अस्तित्व इस दर्शन को मान्य नहीं है। संसार की सृष्टि के लिये धर्म और अधर्म का पुरस्कार और दण्ड देने के लिये ईश्वर को मानना भ्रान्तिमूलक है। मीमांसा-दर्शन में ईश्वर के स्थान पर अनेक देवताओं को माना गया है इसलिये इसे 'अनेकेश्वरवादी' कहा जाता है। कुमारिल और प्रभाकर भी जगत की सृष्टि और विनाश के लिये ईश्वर की आवश्यकता नहीं महसूस करते। ईश्वर को विश्व का स्रष्टा, पालनकर्ता और संहारकर्ता मानना भ्रामक है। कुमारिल तो वेद को भी ईश्वर की रचना नहीं मानते। मनुष्य को अपने कर्मानुसार विभिन्न योनियों में जन्म मिलता है तद्नुसार ही सुख-दुःख, स्वर्ग-नरक आदि की प्राप्ति होती है। ६-वेदान्त दर्शन ___ उत्तर मीमांसा वेद के ज्ञानकाण्ड पर आधारित है इसलिये इसे वेदान्त या ब्रह्म मीमांसा भी कहते हैं। वेदान्त शब्द का प्रयोग उपनिषदों के लिये होता है क्योंकि उपनिषद वेद के अन्तिम भाग हैं। बादरायण 'वेदान्त' के मुख्य रूप से प्रणेता माने जाते हैं। उनका समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी और ईस्वी सन् दूसरी शताब्दी के बीच माना जाता है। कुछ विद्वानों और दार्शनिकों ने उन्हें पौराणिक वेदव्यास ही माना है जिन्होंने 'महाभारत' की रचना की थी। पाणिनि ने भी जिन पाराशर्य भिक्षुसूत्रों का नाम उल्लिखित किया है वे पराशर के पुत्र महर्षि बादरायण व्यास के द्वारा विरचित 'ब्रह्म-सूत्र' से भिन्न नहीं प्रतीत होता है। किन्तु इस पर बहुत अधिक मतभेद हैं कुछ विद्वानों का मानना है कि संभवतः ये 115
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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