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________________ २. नियम- 'शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वर प्रणिधानानिनियमाः ।' शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्राणिधान ये पांच नियम है। ३. आसन- 'स्थिरसुखमासनम्' जिसमें स्थिर सुख की प्राप्ति हो वह आसन है। ४. प्राणायाम- 'तस्मिन् सति श्वास प्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः ।' अर्थात् आसन-सिद्धयनन्तर श्वास प्रश्वास की गति का ही विच्छेद 'प्राणायाम' है। ५. प्रत्याहार- "स्वविषया सम्प्रयोगे चित्तस्य स्वरूपानुकारइवेन्द्रियाणाम प्रत्याहारः।। इन्द्रियों का अपने अपने विषय के साथ संयुक्त न होने पर चित्ताकार स्वरूप सा हो जाना ही प्रत्याहार है। ६. धारणा- 'देशबन्धचित्तस्य धारणा' अर्थात् चित्त को नासिकादि किसी देशविशेष में एकाग्र करना ही धारणा है। ७. ध्यान- 'तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् - किसी विषय पर चित्त की एकाग्रता ही ध्यान है। ८. समाधि- 'तदेवार्थ मात्र निर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः । अर्थात् ध्यान ही ध्येय के स्वरूप का होकर और स्वस्वरूप से शून्य जैसा हो जाता है। धारणा, ध्यान, समाधि योग के अन्तरङ्ग साधन है और उपर्युक्त पांच वहिरङ्ग साधन है। समाधि के अन्तर्गत दो प्रकार की समाधि वर्णित की गयी है- १. सम्प्रज्ञात समाधि, २. असम्प्रज्ञात समाधि । सम्प्रज्ञात समाधि 'सम्यक् प्रज्ञायतेऽस्मिन्निति सम्प्रज्ञातः'। अर्थात् चित्त की एकाग्र भूमि में जब वृत्ति का निरोध होता है तब सात्विक बुद्धि पूर्णरूप से उदित हो जाती है और प्रकृति-पुरूष का विवेकज्ञान हो जाता है- 'व्यक्ताव्यक्त विज्ञानात'। सम्प्रज्ञात समाधि असम्प्रज्ञातसमाधि की पूर्ववर्ती साधन मात्र है और इसके सिद्ध होने पर ही असम्प्रज्ञात समाधि होती है। सम्प्रज्ञात समाधि सिद्धिचार सोपानक्रम में होती है 108
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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