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________________ है जब चित्त इन्द्रियों द्वारा वाह्य विषयों के सम्पर्क में आता है अथवा स्वयं ही मानस विषयों के सम्पर्क में आता है तब वह विषय का आकार ग्रहण कर लेता है और इस प्रकार 'तदाकाराकारित' हो जाता है इसे ही 'वृत्ति' कहते हैं। इस प्रकार क्लिष्ट अक्लिष्ट के भेद से वृत्तियां पांच प्रकार की होती है- "प्रमाण विपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः" (योग सूत्र ६)। अविद्यादि पञ्चक्लेशों से उत्पन्न होने वाली (वृत्तियों) तथा कर्मसंस्कार समूहों को उत्पन्न करने वाली वृत्तियाँ क्लिष्ट और विवेकख्यातिविषयक गुणों के कार्य की विरोधनी वृत्तियां अक्लिष्ट कही जाती हैं। इन चित्त-वृत्तियों का निरोध चित्तभूमियों में ही होता है। ये चित्त भूमि हैं- क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र, निरूद्ध, इन पांच भूमियों में क्रमशः पांच वृत्तियों का निरोध होता है। योगशास्त्र में साधकों की तीन श्रेणियां बतायी गयी हैं- १. उत्तम, २. मध्यम, ३. अधम । इन्हें क्रमशः योगरूढ़, युञ्जान तथा आरुरक्षु भी कहा गया है। १. योगसूत्रकार महर्षि पतंजलि ने उत्तम साधक को चित्तवृत्ति निरोध के लिये अभ्यास, वैराग्य को बताया है 'अभ्यास्वैराग्याभ्यांतन्निरोधः ।' २. मध्यम योगी के लिये क्रिया योग को बताया गया है- 'तपःस्वाध्यायईश्वर प्रणिधानंक्रियायोगः।' ३. अधम साधकों के लिये अष्टांग योग को बताया गया है। अष्टांग योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि ये योग के आठ अंग है। 'यमनियमाऽऽसनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावंगानि।' १. यम- 'अहिंसा-सत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः ।।३०।। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यम हैं। * पातंजल योग दर्शनम्- डा० सुरेश चन्द्र श्रीवास्तव-पृ० २६५। 107
SR No.010176
Book TitleBramhasutra me Uddhrut Acharya aur Unke Mantavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVandanadevi
PublisherIlahabad University
Publication Year2003
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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